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अश्लील मजाक की तरह ठहाका

प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan
अश्लील मजाक की तरह उजले काले सिंहद्वार पर
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जो शहर में
गाँव की धमकी बनकर आया था अश्लील मजाक की तरह ठहाका ऊपजाकर चुक गया,
पूरी विनम्रता के साथ झुक गया पूरा गाँव
शहर के उजले-काले सिंहद्वार पर

नकली संवेदनाओं के असली सौदागरों के बाजार में बोलियाँ लगाता रहा दीदे चमका-चमकाकर चुक गया, पूरी विनम्रता के साथ झुक गया
पूरा गाँव शहर के उजले-काले सिंहद्वार पर नई शताब्दी के
सहज सलोने मुहाने पर
कोन पूछे किससे क्या खोया
चुक गया,
पूरी विनम्रता के साथ झुक गया पूरा गाँव शहर के
उजले-काले सिंहद्वार पर

अगर नहीं आता

अगर जो कभी काँटा को फूल का सलाम नहीं आता
कैसे जी सकता कलम नहीं होती, कलाम नहीं आता
मुहब्बत के आकाश में रंगों को बिखरना नहीं आता
लंबी उम्र में अगर कभी दो पल जी लेना नहीं आता
वक्ती खुशियों में मन को अगर घबराना नहीं आता
ख्वाबों को अपने सिलसिले में सिमटना नहीं आता
अँधेरे में जो कलियों को चटकना अगर नहीं आता
रौशनी की आवाज को थरथराना अगर नहीं आता
हाँ मुड़ कर कोहराम को देखना अगर नहीं आता
जो सामने आनेवाले मंजर को परखना नहीं आता
अपनी खामोशियों में पिघलना अगर नहीं आता
जो बोलती भौहों को बिचकना अगर नहीं आता