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सोना एक धातु है, क्रिया भी

सोना एक धातु है, क्रिया भी
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पुरखे कवियों से सीखा
रिश्तों की पहचान
बार-बार टूटकर जुट जाने में होती है
पड़ जाये गाँठ तो धागा
बिन गाँठ जुड़ जाये तो सोना

सोना एक धातु है, क्रिया भी

गुनाह बेपरदा होगा चमन मुस्कुरायेगा

गुनाह बेपरदा होगा
चमन मुस्कुरायेगा
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दिखाकर ख्व़ाब जो लूट ले चमन
बेपरवाह कि
कैसे मुल्कियों में कायम रहे अमन
मुल्क का नहीं वह खैरख्वाह
उसका साया भी  पुरगुनाह

वह मेरा रहनुमा नहीं, हरगिज़ नहीं

लोभ लालच का फंदा
सुलह या सौगात नहीं

वो लूटते रहें वैखौफ
यह तो खुशनुमा मंजर नहीं है
जो दिखता है बाहर
यकीनन वह अंदर नहीं है
अल्फाज़ हैं भटके हुए-से
नीयत भी साफ नहीं है

वह दिन भी आयेगा
गुनाह बेपरदा होगा
चमन मुस्कुरायेगा

इस रात की हुस्न को मयस्सर कोई चाँद सितारा नहीं

इस रात की हुस्न को मयस्सर कोई चाँद सितारा नहीं
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हजार बाहों से पानी
मुझे पुकारता रहा
हमारी जमीन को मंजूर नहीं
हवा को भी यह गवारा नहीं।

उलझे हुए रहे
आखिर तक मेरे खयालात
और ख्वाव भी कुछ बेतरतीब-से
मगर आवारा नहीं।

यतीम तो थे कभी नहीं,
अगरचे गोद लिए गये
फिर यतीमी का आलम
रूह पर सवार हो गया
हुस्न वीराना हुआ तो
किसी ने सवारा नहीं।

बेवजह तो मौत होती नहीं
जिंदगी के सबब को
किसी ने सही ढंग से
पुकारा नहीं।

ये जो खतो किताबत थे
मुकद्दस हर्फों का था
इनमें कोई गुजारा नहीं।

हजार बाहों से
पानी मुझे पुकारता रहा
मैरी जमीन को यह गवारा नहीं
हवा को भी यह मंजूर नहीं।

वात तो बस इतनी-सी कि
ठोकरें मुस्कुराती रहीं
घायल कदमों का
कोई सहारा नहीं।

ऐतबार की बात अपनी जगह
इस रात की हुस्न को मयस्सर
कोई चाँद सितारा नहीं।