tag:blogger.com,1999:blog-1783622827187886933.post3126870189112757871..comments2023-10-30T15:20:13.292+05:30Comments on विचार और संवेदना का साझापन: समकालीन चुनौतियों के सामने हिंदी कविताप्रफुल्ल कोलख्यान / Prafulla Kolkhyan http://www.blogger.com/profile/08488014284815685510noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-1783622827187886933.post-12646698100906732642012-10-28T16:30:27.224+05:302012-10-28T16:30:27.224+05:30.....साहित्य भी उन्हीं उपकरणों में से एक है। ये उप........साहित्य भी उन्हीं उपकरणों में से एक है। ये उपकरण आज कितने कारगर रह गये हैं या इन उपकरणों को आज किस तरह प्रभावी और भरोसेमंद बनाये रखा जा सकता है, इन सवालों पर विचार करना और उसे कार्यरूप देना साहित्य की प्रमुख चुनौतियाँ हैं। साहित्य की चुनौतियों पर विचार करते हुए हमारा सामना कुछ अप्रीतिकर ......के साथ साथ सहमति और असहमति के बिन्दुओं पर आत्मविरोध का चलन और सर्वसम्मति के बहाने सच्चाई की उपेक्षा आदि जटिल परिस्थितियों का आपने बहुत सुंदर विश्लेषण किया है, समकालीन कविता और कवियों पर लिखी गई एक महत्वपूर्ण और जरुरी आलेख है, आपका आभार| सुन्दर सृजक https://www.blogger.com/profile/03250365209576301112noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1783622827187886933.post-29222540351195723292012-10-27T21:14:34.220+05:302012-10-27T21:14:34.220+05:30आभार आपके सुझावों से सहमत हूँ। असल में मैं अपने का...आभार आपके सुझावों से सहमत हूँ। असल में मैं अपने काम को अद्यतन करने की कोशिश में हूँ। मुझे यह मानने में कोई झिझक नहीं है कि कई महत्त्वपूर्ण कविताओं के संदर्भ नहीं लिए जा सके हैं।प्रफुल्ल कोलख्यान / Prafulla Kolkhyan https://www.blogger.com/profile/08488014284815685510noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1783622827187886933.post-1549158148631339122012-10-27T20:06:51.874+05:302012-10-27T20:06:51.874+05:30एक अच्छा एवं प्रभावशाली आलेख .....पूर्वार्ध जबरदस्...एक अच्छा एवं प्रभावशाली आलेख .....पूर्वार्ध जबरदस्त है लेकिन उत्तरार्ध उद्धरणों के बोझ से दब गया है......जिन कवियों और कवितओं का उल्लेख किया वे सभी दमदार हैं पर युवा कविता की जबरदस्त उपेक्षा की गयी है जिस समय में हिंदी की तीन-चार पीढ़ियों के लगभग १५० से अधिक कवि रचनारत हों पर १५-१६ कवियों की कविताओं के आधार पर कोई बात कहकर उसे पूरी हिंदी कविता मान लिया जाय यह मुझे कुछ आधा-अधूरा लगा......बावजूद इसके मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला .अच्छा लगा.आपके लेखन का मैं हमेशा प्रशंसक रहा हूँ.Mahesh Chandra Punethahttps://www.blogger.com/profile/09695768908018459567noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1783622827187886933.post-65537492589355387542012-10-27T19:24:16.547+05:302012-10-27T19:24:16.547+05:30प्रफुल्ल कोलख्यान जी ,..सबसे पहले तो आपका बहुत बहु...प्रफुल्ल कोलख्यान जी ,..सबसे पहले तो आपका बहुत बहुत आभार ..आपका यह लंबा लेख नामचीन कवियों की काव्यधारा में बहता इतना रोचक लगा कि एक सांस में पढता चला गया । आपका सर्वेक्षण एक अत्यंत महत्वपुर्ण साहित्यिक दु:साध्य परिस्थितियों का अंकन है ,.और विश्लेषण कई विलक्षण कवितांशों के माध्यम से एक विशिष्ट प्रलेख है जो मुझ से एक पाठक को हतप्रभ कर गया .। नामवर सिंह बताते हैं, ‘टुटपुँजिया मध्यवर्गीय जलन अक्सर आपसी वैमनस्य को भड़काती रहती है जिसके कारण लेखकों के बीच न कोई संयुक्त मोर्चा बन पाता है और न संगठन ही चल पाता है। जन-लेखकों का निर्माण, निश्चय ही, जन-संघर्षों और आत्म-शिक्षा की दीर्घ प्रक्रिया है ,..अच्छा लगा । लेख अपने केन्द्रीय भाव से अशातीत विस्तार पा गया है परंतु यह स्वयं मे अर्थ की रोचकता से मुझ जैसे पाठक को अखरने के बजाय चमत्कृत और प्रकाशित और सुशांत करता है । ऎसे सकारात्मक दिशायुक्त प्रयास जनित लेख और भी पढना चाहुगां । पुन: आपका धन्यवाद सह आभार,..।Anavrithttps://www.blogger.com/profile/12922177615881087957noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1783622827187886933.post-50764409343897068602012-10-27T10:30:16.423+05:302012-10-27T10:30:16.423+05:30vicharottejak alekh ke liye dhanyavadvicharottejak alekh ke liye dhanyavadrabi bhushan pathakhttps://www.blogger.com/profile/18276093089412772926noreply@blogger.com