tag:blogger.com,1999:blog-1783622827187886933.post6570736756550013404..comments2023-10-30T15:20:13.292+05:30Comments on विचार और संवेदना का साझापन: सभ्यता फिर भी उम्मीद से हैप्रफुल्ल कोलख्यान / Prafulla Kolkhyan http://www.blogger.com/profile/08488014284815685510noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-1783622827187886933.post-1055334324287536312013-02-04T21:34:55.130+05:302013-02-04T21:34:55.130+05:30"बाजारवाद’ के ‘जनतंत्र’ में लोगों का लोगों से..."बाजारवाद’ के ‘जनतंत्र’ में लोगों का लोगों से अनुराग कम होता है। वस्तुओं से अनुराग बढ़ता है। वस्तुओं को मनुष्य का सम्मान और मनुष्य को वस्तुओं का दर्जा मिलता है। राज्य ‘बाजारवाद’ के सबसे कारगर उपकरण के रूप में बदल जाता है। राज्य नागरिकों से नहीं, उपभोक्ताओं से अपनी पहचान बढ़ाता है। ऐसे में प्रतिरोध या किसी भी प्रतिविचार को निर्ममतापूर्वक छिन्न-भिन्न कर देना शक्ति के जनतंत्र के बाएँ हाथ का खेल रह जाता है। "<br /><br />बाजार और बाजारवाद का अच्छा विश्लेषण. शुक्रिया.mahesh mishrahttps://www.blogger.com/profile/05444936923565480363noreply@blogger.com