tag:blogger.com,1999:blog-1783622827187886933.post7640702593451015085..comments2023-10-30T15:20:13.292+05:30Comments on विचार और संवेदना का साझापन: समृद्ध का आनंद और निर्धन का नसीबप्रफुल्ल कोलख्यान / Prafulla Kolkhyan http://www.blogger.com/profile/08488014284815685510noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-1783622827187886933.post-63371206342024556462013-02-07T19:39:18.516+05:302013-02-07T19:39:18.516+05:30"साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण प्रयोजन प्रच्छन्न..."साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण प्रयोजन प्रच्छन्न या सतह के नीचे चल रहे ऐसे संघर्षों को पहचानना, प्रच्छन्नता को दृश्य बनाना और सतह के ऊपर लाना भी होता है। जो साहित्य अपने इस प्रयोजन के महत्त्व को ठीक से समझकर रचनात्मक चुनौतियों का सामना नहीं करता है, वह अंतत: यथास्थितिवाद का शिकार होने या उसे मजबूत करने से बच जाये तो भी यथास्थिति को सामने लाने से अधिक कुछ कर नहीं पाता है--- यथार्थ की स्थिति को तो पकड़ पाता है लेकिन यथार्थ की गति उसकी पहुँच से बाहर ही होती है। रचना के भीतर स्थिति में गति और गति में स्थिति का संधान और उनके गुणनफलों को हासिल करना तो बहुत दूर की बात है। ध्यान में रखना जरूरी है कि यथास्थिति और यथार्थ एक अपर के अनिवार्य पर्याय नहीं होते हैं। आत्म-विसंगतियों और विडंबनाओं के माध्यम से कुछ चुटीली उक्तियों, कुछ मार्मिक प्रसंगों, मनोरंजक क्षणों आदि का रचनात्मक विनियोग भले हो जाये और प्रथम दृष्टि में रचना पाठकों को भले ही आकृष्ट कर ले, लेकिन उससे आगे बढ़ पाना उसके लिए संभव नहीं होता है। "<br /><br />बेहद सारगर्भित और श्रेष्ठ मूल्यांकन.mahesh mishrahttps://www.blogger.com/profile/05444936923565480363noreply@blogger.com