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दिल का दखल गया

मैं ने चेहरे को सराहा बहुत, इतना कि उसका चेहरा बदल गया
जाते-जाते उस के ही हाथ में, अपने यतीम दिल का दखल गया

बच गया किसी तरह दुख आया था पर उसका रास्ता बदल गया
जाते हुए उसकी मुस्कान हवा में उछली मैं बाँकपन से दहल गया

दिल का क्या कभी इस तो कभी उस अदा पर बेमौके मचल गया
सदा लड़ता रहा दुश्मनों से, वह इक जरा सी बात से फुसल गया

आदमी का किरदार क्या भरोसा थोड़ी सी छूट मिली फिसल गया
उसे समझता रहा गैर सदा लेकिन वह अपना ही कोई निकल गया

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