अपनी कविताओं पर बात
करना, बहुत अच्छा नहीं लगता है। मुझे पता है कि मैं कवि नहीं बन पाया हूँ,
लेकिन अपनी कविताओं के अलक्षित रह जाने का मुझे भी बहुत दर्द है!
इसी दर्द के कारण आलोचकों से मेरी भी लगभग वही शिकायत है, जो
आम तौर पर कवियों की होती है। मैं मानता हूँ कि आलोचकों
से किसी भी तरह की शिकायत का न तो मुझे हक है और न यह मुझे शोभता है। फिर! कुछ
कविताओं के लिंक दे रहा हूँ कि क्या पता शायद किसी को अच्छी लग ही जाये! अच्छी नहीं लगने पर भी जो अपनी राय देंगे, मैं उनके प्रति सदा आभारी रहूँगा…
jinda rahne ke liye to sari kawayad hoti hai,,,dukhon pe kabu pana..suljha bahana....sadhe shabdon me suljhi kavita..
जवाब देंहटाएंआभार अपर्णा जी,,,
हटाएंPrafulji.ashankhya dhanyavad kya khoob. Sapno ko sawal pasand nahi shor pasand nahi. Aaj paash yaad aa gaye.sabse khatarnak hota hai hamare sapno ka mar jana. Sari kavitanye pustak ke roop mai uplabdh hai?
जवाब देंहटाएंआदरणीय भाई, टिप्णी के लिए आभार.. इनमें से कुछ कविताएँ 'मँजी हुई शर्म का जनतंत्र' में शामिल हैं बाकी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित में से कुछ यहाँ लगाई गई हैं...
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