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ग्राहक, याचक, शेर और सियार की कथा

एक शब्द सशक्तीकरण (EMPOWERMENT) है, इसका तात्पर्य होता है आधिकारिकता के इस्तेमाल के लिए उस तक आसान पहुँच (EASY ACCESIBILITY) बनाकर बांछित परिणाम हासिल करने की शक्ति (POWER) से संयुक्त करना। पहुँच का आसान होना सापेक्षिक स्थिति है, जो पहुँच का इस्तेमाल करनेवाले की अपनी आंतरिक-शक्ति पर बहुत हद तक निर्भर करता है। पहुँच का इस्तेमाल करनेवाले की अपनी आंतरिक-शक्ति में तत्काल वृद्धि किया जाना संभव नहीं होता है, जबकि, आंतरिक-शक्ति की पहचान के बाद, तनिक भी विलंब से सामाजिक-सामुदायिक असंतुलन का खतरा बढ़ने लग जाता है। सामाजिक संतुलन (SOCIAL BALANCE) को ध्यान में रखकर ACCESIBILITY को EASY करने के लिए सकारात्मक भेदभाव (POSITIVE DISCRIMINATION), अर्थात आरक्षण और उपदान (SUBSIDY) का रास्ता अपनाना जरूरी होता है, लेकिन सकारात्मक भेदभाव (POSITIVE DISCRIMINATION) के नकारात्मक भेदभाव (NEGATIVE DISCRIMINATION) में बदलने से रोकने का भी पुरजोर सचेत प्रयास करना जरूरी होता है। एक शब्द CAPACITY BUILDING है, इसका तात्पर्य होता है इस्तेमाल करनेवाले व्यक्ति, समुदाय आदि की आंतरिक-शक्ति के बढ़ने का अवसर बनाना।
चालाक व्यवस्था सशक्तीकरण (EMPOWERMENT) की प्रक्रिया को तो बढ़ाती है, ACCESIBILITY को EASY करने के लिए POSITIVE DISCRIMINATION का रास्ता भी अपनाती है, कुछ हद तक, सकारात्मक भेदभाव (POSITIVE DISCRIMINATION) के नकारात्मक भेदभाव (NEGATIVE DISCRIMINATION) में बदलने से रोकने का भी प्रयास करती है। लेकिन, CAPACITY BUILDING की प्रक्रिया को मंद रखती है या बढ़ाने के लिए कोई खास पहल नहीं करती है। क्यों? क्योंकि सशक्तीकरण (EMPOWERMENT) और सकारात्मक भेदभाव (POSITIVE DISCRIMINATION) की प्रक्रिया व्यवस्था की छवि को लोक-कल्याणकारी होने की आभा से जुड़ने में मदद करती है और उसके छवि-निर्माण, IBM (IMAGE BUILDING MEASURES) का हिस्सा होती है जबकि CAPACITY BUILDING की प्रक्रिया से लोगों की बांछित परिणाम हासिल करने की शक्ति (POWER) में इजाफा हो जाता है और ऐसे लोग याचक (माँगनेवाले) की स्थिति से ऊपर उठकर ग्राहक (हक को ग्रहण करने में स्वयं-सक्षम) की स्थिति में पहुँच जाते हैं। याचक (माँगनेवाले) के सामने राज्य/सरकार के लिए मालिक की स्थिति में होना आसान होता है, जबकि ग्राहक (हक को ग्रहण करने में स्वयं-सक्षम) के सामने राज्य/सरकार को सेवक की मुद्रा में आना पड़ता है। मालिक बने रहना किसे अच्छा नहीं लगता है! विकसित व्यवस्था के नागरिक जमात का बड़ा हिस्सा ग्राहक की स्थिति में होता है। विकासशील व्यवस्था में नागरिक जमात का बड़ा हिस्सा याचक की स्थिति में होता है। हमारी जैसी विकासशील व्यवस्था के नागरिक जमात का एक बड़ा हिस्सा याचक (माँगनेवाले) की स्थिति में तो नागरिक जमात का एक अन्य छोटा हिस्सा ग्राहक (हक को ग्रहण करने में स्वयं-सक्षम) की स्थिति में होता है। हमारी व्यवस्था विकासशील है। इसलिए नागरिक जमात के एक हिस्से के साथ राज्य/सरकार सेवक की तरह और एक अन्य हिस्से के साथ मालिक की तरह बरताव करती है। हम इस बात को बुद-बुदाते रहते हैं कि कानून की नजर में सब समान है और इस बात को कई बार समझ ही नहीं पाते हैं कि कानून की नजर में सब समान होते हुए भी राज्य/सरकार की नजर में सब समान क्यों नहीं होता है। सब समान नहीं होता है, याचक (माँगनेवालेया ग्राहक (हक को ग्रहण करने में स्वयं-सक्षमकी स्थिति भिन्नता के कारण। पशुगण क्षमा करें, राज्य/सरकार की निर्मिति में आधा शेर, आधा सियार होने के स्थिति होती है। कई बार याचक (माँगनेवाले) नागरिक जमात के सामने ग्राहक (हक को ग्रहण करने में स्वयं-सक्षम) नागरिक जमात भी राज्य/सरकार, अर्थात मालिक की तरह से बरताव करने लगता है। राज्य/सरकार किसी दूसरे को राज्य/सरकार की तरह से आचरण करने को अपने लिए चुनौती मानती है। स्वाभाविक रूप से याचक (माँगनेवाले) नागरिक जमात और ग्राहक (हक को ग्रहण करने में स्वयं-सक्षम) नागरिक जमात के हित-लाभ में टकरावों के बीच सामुदायिक-सामाजिक शुभ को सुनिश्चित करने के लिए संतुलनकारी भूमिका की जरूरतें राज्य/सरकार को टिकने की सम्मानजनक जगह देती है। ग्राहक (हक को ग्रहण करने में स्वयं-सक्षम) नागरिक जमात सामाजिक शुभ को सुनिश्चित करने के लिए संतुलनकारी भूमिका की जरूरतों को खारिज करता है और याचक (माँगनेवाले) नागरिक जमात से हित-लाभ में टकरावों किसी भी स्थिति में पलड़ा अपनी ओर झुका लेने की खुली छूट चाहता है और उम्मीद करता है कि राज्य/सरकार या तो इसमें मददगार हो या फिर बीच से हट जाये-- यानी खुल--खुल्ला OPEN व्यवस्था!

हमारी, भारतीय, स्थिति बहुत ही खतरनाक है, इसके ग्राहक (हक को ग्रहण करने में स्वयं-सक्षम) नागरिक जमात ने भ्रष्टाचार-बदनीयती से ग्रस्त घुन खायी राज्य/सरकार को बे-दखल करना शुरू कर दिया है। यदि बे-दखली की यह प्रक्रिया आगे बढ़ी तो याचक (माँगनेवाले) नागरिक जमात और ग्राहक (हक को ग्रहण करने में स्वयं-सक्षम) नागरिक जमात के बीच भयानक टकराव बढ़ेगा, जो अनियंत्रित होकर अंतर्ध्वंस की किसी हद तक, गृह-युद्ध तक, पहुँच जा सकता है। ऊपर से बीच-बचाव में भ्रष्टाचार-बदनीयती से ग्रस्त घुन खायी राज्य/सरकार के अक्षम साबित होने का खतरा रहेगा।

इस खतरा से बचने का एक उपाय यह है कि भ्रष्टाचार-बदनीयती से मुक्त होकर राज्य/सरकार सामुदायिक-सामाजिक राष्ट्रवाद के उपकरणों से अपनी खुद की CAPACITY BUILDING की प्रक्रिया को तत्काल बहाल करने का प्रयास करे और सामुदायिक-सामाजिक राष्ट्रवाद के इन्हीं उपकरणों से याचक (माँगनेवाले) नागरिक जमात की CAPACITY BUILDING की प्रक्रिया को भी बिना समय गँवाये तेज करे। यही याचक (माँगनेवाले) नागरिक जमात, अंततः, सामुदायिक-सामाजिक राष्ट्रवाद के उपकरणों से लैस राज्य/सरकार और सामुदायिक-सामाजिक जनतंत्र की रक्षा करेगा।

हम तो ठहरे याचक... थोड़ा कहा, कथोपरांत ज्यादा समझें... भाई...

यह कथा ही तो है... कथांतर नहीं... गलत कहा तो ठोकर मारें... मालिक..

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