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कोई ठिठक. ठसक और तंज नहीं

रजनी भारद्वाज के काव्य संकलन 'नेह की बारिशें' की कविताएँ पढ़ी। प्रेम भाव की तरह नहीं, स्वभाव की तरह इन कविताओं में अभिव्यक्त हुआ है। यह बड़ी बात है। इस प्रेम स्वभाव का आकाश जितना विस्तृत है, जमीन उतनी दृश्य नहीं है। इस प्रेम स्वभाव में औदात्य इतना है कि किसी अभाव की कोई जगह नहीं है। इस प्रेम स्वभाव की सरिता में गति है, तरंग है, रंग है … कोई ठिठक. ठसक और तंज नहीं। कविताएँ इतनी सहज संवेद्य हैं कि अलग से कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है। इन कविताओं में नेह, प्रेम एक भाव है, कर्म है, धर्म है, मर्म है और एक प्रक्रिया भी। यह सब होते हुए, प्रेम सबसे बड़ा मूल्य है और मनुष्य की सर्वोच्च रचना, जी हां सर्वोच्च! कविता से भी ऊँची कृति है प्रेम की प्रकृति। प्रेम की प्रकृति का यह औदात्य जीवन के हर दुख को सहनीय और हर प्रसंग को रमणीय बना देता है। प्रेम की प्रकृति का यह प्रदेश जिसका प्रवेश सहज-सुगम बन जाता है, उसके जीवन का पर्यावरण अपने अनावरण में भी हर प्रदूषण से मुक्त रहता है। इस तरह इस संग्रह की कविताएँ रचने की नहीं जीने की कला के अधिक निकट है। ऐसे स्व-भाव प्रसंग को सफलता से आयत्त करने और सहजता से अभिव्यक्त करने में इन कविताओं का सौंदर्यबोध है। इन्हें निजी तौर पर आयत्त करना और चुपके से अपने भाव-प्रसंग का हिस्सा बना लेना पाठक को अच्छा लगेगा।

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