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'स्वजन' और 'श्वजन'



'स्वजन' और 'श्वजन'


वैसे तो, बात पुराने जमाने की है लेकिन क्या पता आज के भी काम की हो। एक विद्वान का पुत्र पढ़ने से कतराता था। पिता बहुत निराश थे। अपने एक साथी विद्वान से सलाह करने पहुँचे कि इस वीरवान बालक का आखिर किया क्या जाये! सघन सलाह के बाद तय हुआ कि इसे भाषा संबंधी ज्ञान को अवश्य ही अर्जित करना चाहिए। अब समस्या यह थी कि इसके लिए साहित्य की राह पकड़ी जाये या व्याकरण की! जैसा कि विद्वानों के साथ होता ही है, फिर सघन-सलाह! अंत में फैसला व्याकरण के हक में गया। व्यकारण के हक में निर्णायक तर्क यह कि किसी तरह थोड़ा-सा भी व्याकरण पढ़ ले तो 'स्वजन' और 'श्वजन' में फर्क कर पायेगा। व्याकरण का बोध बिगड़ जाये तो 'स्वतंत्र' के 'श्वतंत्र' हो जाने में कितनी देर लगती है!! बहुत डर लगता है... भाइयो और बहनो... बहुत डर लगता है...

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