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धराऊ

प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan
धराऊ
खनकती होगी धूप
किसी के आँगन में
गाती होगी
चाँदनी किसी की सिहरन में
इस पर कोई बहस नहीं

अपना वास्ता
उस धूप से है
जो दबे पाँव आती है
गिरबी रखे बासन की
स्मृति में
कौंध की तरह

अपना वास्ता
उस चाँदनी से है
जो ठिठक जाती है
पड़ोसी की छत पर
बड़े साइनबोर्ड की
चमक की जद में
फँसे धूल भरे नंगे पाँव की तरह

धूप चाँदनी हवा
जिस दिन तुम
ठीक कर पाओगे
हमारे जख्म
सहेज पाओगे
पसीना
उस दिन
हम सुबह-सुबह
नहायेंगे हुलास की नदी में
बनाकर कतार
हो जायेंगे खड़े
सपरिवार
और बच्चों को
ताली पर ताल देना
सिखाते हुए
रच देंगे उनके हर ओठ पर
एक नया गीत
मुस्कान में ढालकर
जो होगा धराऊ

जिसे वक्त रखेगा दुलारकर

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