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सीखने में शर्म!

सीखने में शर्म! हाँ, शर्म तो आती है। सीखने के लिए हम जो जानते हैं उसे सामने लाना होता है, नहीं जानने को कबूल करना भी जरूरी होता है। बंद मुट्ठी लाख की, खुल गयी तो खाक की! मुट्ठी बंद रखने में ही भलमनसाहत है! जी, शर्म तो आती है!!!

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