विचार और संवेदना का साझापन
आप की राय सदैव महत्त्वपूर्ण है और लेखक को बनाने में इसकी कारगर भूमिका है।
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पुस्तक चर्चा
आ
एक बार और मर कर दिखाओ
इस समय, आराम पसंद लोग
ढलती उम्र में मन की उठान
उड़ान पर है संविधान
भूख है दरम्याँ सियासत नहीं
जहन्नुम में खुदकुशी! जी कोई खबर है क्या
अबकी हँसता हुआ कबीर
बातों में अब बहर कहाँ
यावत वरतं, ताबत बरतं!
दुख का कोई नहीं निदान
बुझारत पर डाका पड़ा था
नाना रूप धर कर निकले हैं
तर्जनी पर लगी, स्याही
खिड़की से समय में झाँकता हूँ
तयशुदा मकाम नहीं है
दिल का दखल गया
मिली जनतंत्र के जागीर में
ऊँचाई के माथे पर, लिखी ढलान
तेरी आबरू क्यों महज जिस्मानी है
एक दुर्लभ दृश्य
क्या मुश्किल है मिलना, एक बूँद आँसू और उसके भीतर ह...
क्योंकि, प्यास एक घटना है और नदी एक संभावना
पूजा का फूल लहुलुहान क्यों है
आखिर रही खोट कहाँ कयास में
तेरे वजूद को छूना चाहा
सूखे जज्वात का निहोरा
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मेरी खुशी की मेरे गम से आशनाई है
प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan
मेरी खुशी की मेरे गम से आशनाई है
आज अभी दोनों की मन से विदाई है
चेहरे पर न हँसी न पहली रुलाई है
चाँद तारों की, सब की तो धुलाई है
एक कली, अाज डाल पर मुरझाई है
हँसते मिलेंगे, बाकी इतनी बेहयाई है
देखकर चाँद समझे कि मुँह देखाई है
हम नहीं प्रथम, बहुतों ने आजमाई है
हाँ जी हाँ न विस्तरा है न चारपाई है
यह बात कवि त्रिलोचन की बताई है
प
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