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अब कोई मुकरे ही क्यों
प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan
जी हाँ मेरी बात पर कोई कान धरे ही क्यों देश में पेश इस हालात से कोई डरे ही क्यों अक्ल के सिवा कोई और घास चरे ही क्यों हासिल मुफलिसी ही तो कोई लड़े ही क्यों
इस तरह,दीन-ईमान पर, कोई मरे ही क्यों गुंडे महफिल की शान तो कोई डरे ही क्यों
साथ रहजन उस राह से कोई गुजरे ही क्यों कबूल किया पहले, अब कोई मुकरे ही क्यों
सब ठीक रहे, तो फिर कोई पिछड़े ही क्यों वे साथ हैं जब, ये खेल फिर बिगड़े ही क्यों
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