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आयो घोष बड़ो व्यापारी

रोजगार की बात नहीं, करो खूब बेगारी
साथ में तोप-तमंचा चलते जब धजधारी

यौवन तो बेखबर कि कटती है कैसे बुढ़ारी
अभी, उसके मुँह पर है छिटकी जो खेसारी

जो होते भी अगर करते क्या गिरिधारी
अचरज में पड़े, देखो अबकी खूब मुरारी

चिंता नहीं चतुराई, पंचों में बहस है जारी
पूरा मुल्क हुआ कैसे है गुपचुप एक निठारी

संपद तो उनकी सब, और बिपद हमारी
कैसे छाई है हम पर खुशियों की खुमारी

हुनरमंद है जो आयो घोष बड़ो व्यापारी
जल जमीन सब खतरे में, कैसी लाचारी

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