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समय सखी संवाद

समय सखी संवाद

यह एक खुशगवार सुबह थी
जिसकी पीछे गतिशील अंधकार था और थी ठहरी हुई प्रतीक्षा

सब कुछ वैसा ही हुआ लगभग जैसा कि तय था

ठहरी हुई प्रतीक्षा के दिन-क्षण-काल गिनने का रिवाज नहीं है

इस तरह कहा जा सकता है, ठहरी हुई थी जरूर मगर लंबी थी प्रतीक्षा

लंबी कितनी का जववाब क्या हो सकता है!

ऐसी प्रतीक्षा की लंबाई प्रकाशवर्ष में नापी नहीं जा सकती  

प्रतीक्षा की लंबाई को अंधकारवर्ष में नापना निरादर है प्रतीक्षा का  

इतना ही कहा जा सकता है कि ठहरी हुई थी इसलिए माप से परे थी प्रतीक्षा

प्रतीक्षा के उस छोर पर तुम थी और इस छोर पर मैं था

हाँ अब हम देख सकते थे साफ-साफ अपने आस-पास

और उस वक्त किसी भी तरह की प्रतीक्षा का कोई ओर-छोर नहीं था

ऐसा महसूस ही न हुआ कि हम प्रतीक्षा में थे

प्रतीक्षा के उपांत में हम तो थे उतने ही उतने पास

ठीक-ठीक उतने ही पास और कुछ इस तरह थे जैसे प्रतीक्षा के पूर्वांत में

मेरी दोस्त बिना लंबी उसाँस के भी यह महसूस किया जा सकता है कि

जब कुछ भी नहीं होता या होता है, हर हाल में बची रहती है प्रतीक्षा और तुम

शहर पुराना थो जो नये सिरे सँवर रहा था परंतु इतना कहना पर्याप्त नहीं

पर्याप्त नहीं क्योंकि सँवरना शहर की आदत में शामिल था और बेशुमार था

शहर की रौनक हँसी उदासी और रुलाई में तुम्हारा शमिल होना साफ दिखता था

लेकिन शहर की आदत में न तो तुम्हारा होना दिखा और न तुम में शहर की आदत

हाँ दोस्त शहर में समय दो लोगों के बीच इसी तरह खुदमुख्तारी में खड़ा हो जाता है

कि रहें दो लोग चाहे जितने भी पास, समय बीच में खड़ा हो तो दिखे कुछ भी नहीं

समय जानता था एक-ब-एक सन्नाटा तारी होगा इसके पहले कुछ टूट सकता है

हालाँकि समय को अपने जानने पर संदेह होने लग गया था, समय संदेह में था

समय संदेह में था जबकि देह में न कोई संदेह था न सिहरन, हाँ समय में सहम था

समय में सहम क्या होता है, मैंने पहली बार इस तरह से जाना जैसे कि तुम्हें

समय में सहम के होने का तकाजा यही होता है कि टिकी है

जिस पर सभ्यता की बुनियाद

हर किसी के सिर को ही नहीं वजूद को भी

और काँपकर उठती हुई नजर को भी झुक जाना होता है बार-बार

समय ने जैसे अपने खालीपन को भरा इस तरह कि तोड़ा थोड़ा पीछे हटकर

अब हाथ में थी डायरी और कोरे पन्ने एक कलम भी, कुछ अल्फाज भी

शायद समय चाहता हो! क्या पता कि डायरी के कोरे पन्ने भी चाहते हों

चाहते हों कि दर्ज किया जाये और शामिल भी समय के साथ कुछ संवाद

मैं तब से समय से झगड़ रहा हूँ कि समय अकेला नहीं है संवाद

प्रथमतः और अंततः भी तुम हो इसलिए समय है और समय का संवाद भी

इस तरह कोरे पन्ने में तुम्हें दर्ज करना समय को दर्ज करना हो जाता है

समय को दर्ज करने पर जो दर्ज होता है तो वह तुम ही होती होती हो समय सखी

इस तरह तुम समय, तुम सखी और तुम ही संवाद

शुरू करो कहीं से भी किसी भी तरह और दिशा कोई हो बस चलता रहता है
समय सखी संवाद

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