जनतंत्र सही बेबस रियाया हूँ मेरी कुव्वत ही क्या
न गिरे मुझ पर तेरी गाज तो फिर हुकूमत ही क्या
आसमानी जिल्द नहीं कोई सिवा तेरी जरूरत क्या
मेरा कत्ल मेरे हित में नहीं तो तेरी जम्हूरियत क्या
बेवजह फरफराता रहता हूँ यूँ मेरी सलाहियत क्या
निगाह में उड़ान चाय और केतली की औकात क्या
जो बेच न दे मुल्क की अस्मत अब वह तिजारत क्या
मकतल तक घसीट कर न ले जाये, तो हिकारत क्या
ठगेरी बात रोटी का एवजी न बने, तो वजुहात क्या
मकतूल का चेहरा हँसता न दिखे, तो सियासत क्या
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