पदानुक्रमिक (hierarchical) में अवसर के उपयोग और संभावनाओं को हासिल करने क्षमता भी पदानुक्रमिकता के अनुपात से तय होती है। जाहिर है संतोष की उच्च सीमाओं को भी उसी पदानुक्रमिक अनुपात में तय होना चाहिए। बाज़ारवाद संतोष रेखाओं को तोड़-फोड़ कर संतोष की सीमा रेखाओं को तहस-नहस कर देता है और इस तरह समाज चिर-असंतोष के व्यूह में उलझ-पुलझ कर रह जाता है। ऐसा समाज हमेशा उबाल में रहता है, जिंदगी तदर्थ लगने लगती है और उलट-पुलट भोगता रहता है। ऐसे में आनंद! हमें अपनी जीवन रेखा के साथ ही असंतोष रेखा को भी पहचानना चाहिए। हाँ, यह कठिन है, लेकिन जरूरी है।
आप की राय सदैव महत्त्वपूर्ण है और लेखक को बनाने में इसकी कारगर भूमिका है।
आप की राय सदैव महत्त्वपूर्ण है और लेखक को बनाने में इसकी कारगर भूमिका है।
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प्रगतिशीलता और विकासशीलता
प्रगतिशीलता और विकासशीलता
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कुछ लोगों को काम करने का तरीका बताना आता है, काम करना नहीं आता। तरीका बताना ही उनका काम है। कुछ लोगों को काम करना आता है, तरीका बताना नहीं आता। पहली श्रेणी में बुद्धिजीवी और दूसरी में श्रमजीवी आते हैं। दोनों कभी-कभी एक दूसरे की भूमिका में होते हैं, कभी-कभी! लेकिन एक दूसरे का सम्मान हमेशा करना चाहिए। जिस समय और समाज में सम्मान की समझ का यह भाव और विचार जितना मजबूत होता है, वह समय और समाज उतना ही प्रगतिशील और विकासशील होता है। ध्यान रखने की जरूरत है कि प्रगतिशीलता और विकासशीलता को परस्पर संवादी और सहयोजी बनाये रखना बहुत बड़ी चुनौती है।
(संवादी और सहयोजी = corresponding and coordinating)
चौपाया है, चौपाया है
हम से क्या अब पूछ रहे हो!
हम तो लफ्जों के खेल में हैं मशगूल कवि! नहीं। हम ठहरे लफ्फाज
कंठ में नहीं अपनी कोई आवाज
पूछो उससे
जिसके हाथ अभी तक
कुछ ना आया, कुछ ना आया
बिन बोले बतलायेगा
क्या खोया है उसने और
अब तक क्या है पाया
चारों खम्भा खामोश खड़ा अंतःकरण में ताकझाँक कर
किसी तरह बोला चौथा
बोला चीख-चीखकर
चौपाया है, चौपाया है
मानो या ना मानो
चौपाया है, चौपाया है
तंत्र हमारा चौपाया है!
मंजिल पर जिंदगी
मंजिल पर पहुँचा वही,
जो रास्ता भटक गया
बाकी लोगों की जिंदगी
रास्ते की पहचान
और तलाश में
खप गई
रास्ते की तलाश पूरी हुई
तो चलने की ताकत नहीं रही
यही तो है जिंदगी
हाँ जी हाँ जी लोकतंत्र है
जबर्दस्त है जबरतंत्र हैं, हाँ जी हाँ जी लोकतंत्र है
कहने सुनने में प्यारा है, हाँ जी हाँ जी लोकतंत्र है
रात उजेरी दिन अंधियारा, हाँ जी हाँ जी लोकतंत्र है
प्रतिविचार प्रतिवाद बेकार, हाँ जी हाँ जी लोकतंत्र है
हाँ जी हाँ जी बस जी हाँ, हाँ जी हाँ जी लोकतंत्र है
हा हा हू हू पिटो पिटाओ, हाँ जी हाँ जी लोकतंत्र है
जबर्दस्त है जबरतंत्र है, हाँ जी हाँ जी लोकतंत्र है
घर नहीं, जो कोई घर के अंदर
मेरे अंदर
ओ मेरी जाँ नहीं मैं जिंदा हूँ तेरे अंदर
चाँद को पता है जानता है समंदर
पूछो चाँद से देखो क्या कहता है समंदर
घुमड़ता है जुल्फों में जो आँसू का समंदर
सुमन कहो फूल कहो गुल खिलता है मेरे अंदर
एक और जिंदगी है साँसों में साँसों के अंदर
नाचती है मुकम्मल महबूब की तस्वीर पुतलियों के अंदर
और दुनिया खोजती है जख्मों के निशान मेरे अंदर
चोट जब तेरे दिल को लगती निशान उभरता है मेरे अंदर
मत पूछ क्या उठाती गिराती है तेरी खामोशियाँ मेरे अंदर
नजरशनाशी की सलाहियत बिफरती है सुबह शाम मेरे अंदर
लियाकत शिकायती खतों का बंडल रोज डालती है मेरे अंदर
छुप छुपा कर देखो कि खाली पाँव कैसे घुसता हूँ तेरे अंदर
है हुनर को सलाम हँसता हूँ बाहर जो रोता हूँ घर के अंदर
घर मुस्कुराने की जगह नहीं जो घर नहीं कोई घर के अंदर
है मेरी महबूब की क्या खूब पनाह निगाही मुकम्मल मेरे अंदर