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जीवन रेखा और संतोष रेखा

पदानुक्रमिक (hierarchical) में अवसर के उपयोग और संभावनाओं को हासिल करने क्षमता भी पदानुक्रमिकता के अनुपात से तय होती है। जाहिर है संतोष की उच्च सीमाओं को भी उसी पदानुक्रमिक अनुपात में तय होना चाहिए। बाज़ारवाद संतोष रेखाओं को तोड़-फोड़ कर संतोष की सीमा रेखाओं को तहस-नहस कर देता है और इस तरह समाज चिर-असंतोष के व्यूह में उलझ-पुलझ कर रह जाता है। ऐसा समाज हमेशा उबाल में रहता है, जिंदगी तदर्थ लगने लगती है और उलट-पुलट भोगता रहता है। ऐसे में आनंद! हमें अपनी जीवन रेखा के साथ ही असंतोष रेखा को भी पहचानना चाहिए। हाँ, यह कठिन है, लेकिन जरूरी है।

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