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रिश्तों की रवायत

ये दूरियां
ये मजबूरियां
थथमार देती है
रिश्ते की नजाकत को
मार देती हैं!

अपना कौन, पराया क्या!
अपनों से अधिक पराया कोई क्या खाक होगा!

कभी-कभी अच्छा लगता है अपनों का परायापन
एवजी जिसके
परायों का अपनापन
ये कश्मकश ही शायद
रिश्तों की रवायत है!

ये दूरियां
ये मजबूरियां
थथमार देती है
रिश्ते की नजाकत को
मार देती हैं!

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