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कविता कहानी

जब कोई दर्द बेजुबान हो जाता है तो भाषा के पार चला जाता है। जब किसी भाषा की साँस फूलने लगती है तब वह अपनी छटपटाहट में अपने अस्तित्व के पनाह को अतिक्रमित करने लगती है। बेजुबान दर्द और बेपनाह जुबान के मिलने से अभिव्यक्ति जिन रूपाकारों को ग्रहण करने लगती है उन्हें हम कविता कहते हैं। इस प्रक्रिया के इतर जब भाषा अपना श्रृंगार रचती है तब भाषा का वैभव जिन रूपाकारों में प्रकट होता है वह वाक् विलास होता है। दोनों की अपनी प्रक्रियाएं हैं। दोनों का अपना महत्व है।
जब कोई घटना इतिहास में दर्ज होने का हौसला खो देती है और जन प्रेरणा बनने की सीधी राह नहीं पकड़ पाती है तब उस घटना की व्यथा और वेदना कहानी के रूप में प्रकट होती है। इससे इतर बात रसाने की कला भी नई कहानी को जन्म देती है। दोनों का अपना महत्व है।

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