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बहस नहि, बहस नहि

प्रश्न ओतेक आसान नहि
कने मने काल्पनिक होइतो
नहि छल एकदम अप्रासंगिक
ज नहि रहितथि विप्र कुमार
ओहि ॠचा तक सहजहि जैतथि कि!
मानल जे ओ ॠचा  जनसामान्य क कल्याण कामना क वाहक अछि
ओकर पाठ तक क अधिकार नहि छलै जकरा
निश्चिते ओ ओहि जनसामान्य स भिन्न कोनो आर नामे परिगणित होइत हेत ओ!

भाई तारानन्द वियोगी
ओ अहांक प्रश्न नहि इशारा छल त्रासद परिणति  क

इशारा के बूझल जा सकैत अछि
इशारा स बहस नहि कायल जा सकैत अछि
मुदा उच्चैश्रवा समुदाय इशारा स शास्त्रार्थ करबाक अभिलाषी
जे इशारा नै बुझे से स्वयं स्खलित

दूबि लिअ धान लिअ
तिल लिअ तंडुल लिअ
कांट लिअ कुश लिअ
लिअ बारहखड़ी
बहस नहि बहस नहि
रुदन लिअ चंदन लिअ
बहस नहि बहस नहि


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