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कुछ और तरह से पढ़ियेगा, ठीक! कू.....

कुछ और तरह से पढ़ियेगा, ठीक! कू.....
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चीन में कुछ और तरह से कही-सुनी जाती है, आर्यावर्त में किसी और तरह से। रेवा खंड में कुछ और तरह से तो जम्बू द्वीप में कुछ और तरह से। सब तरह में जो बात समायी रहती है मैं उस तरह से सुनाता हूँ। आप अपनी तरह से सुन लीजियेगा, ठीक!
एक आदमी था। वह अंधेरे में बैठा मन-ही-मन रो रहा था। अंधेरा घुप्प था और आदमी चुप्प था। जब कोई राह नही सूझती है, आदमी चुप नहीं चुप्प हो जाता है। ऐसी हालत को चुप्पी कहते हैं। चुप्पी की रुलाई को आदमी नहीं सुनता है, देवदूत सुना करते हैं। देवदूत कहीं आते जाते हैं नहीं, प्रकट होते हैं और प्रच्छन्न होते हैं माने छुप जाते हैं।
तो हुआ यह कि उस आदमी के सामने देवदूत प्रकट हो गये। पूछा क्या हुआ! यह लालटेन लो और आगे बढ़ो। लालटेन की रौशनी में आदमी का ललाट चमक उठा। उसने कमर कसी। अगली यात्रा शुरू की। मगर यह क्या दो-तीन कदम बढ़ाते ही फिर वही अंधेरा! वही अंधेरा और आदमी किंकर्तव्यविमूढ़! देवदूत ने इशारा किया कि लालटेन हाथ में लो और आगे बढ़ो। लालटेन को साथ लेकर आगे बढ़ोगे तो रौशनी साथ रहेगी और राह रौशन।
आदमी मुश्किल में पड़ गया। लालटेन हाथ में उठाये तो पैर न उठा पाये। पैर उठाये तो लालटेन न उठे। यह सब दो-तीन टर्म तो ऐसे ही गुजर गया। टर्म समझते हैं न, जी टर्म। बिहार में बुद्ध ने कहा था अपना दीपक आप बनो। अपना दीपक बनना ही मुश्किल था। अपना लालटेन आदमी अपने बने तो कैसे!
तो दुविधा में आदमी करे तो क्या करे!  दुविधा यह कि बिना लालटेन उठाये चलो, तो बस दो-तीन कदम! आदमी को दूर जाने की तमन्ना सताने लगी। उसने तरकीब निकाली। तरकीब कि लालटेन बोलते रहो चलते रहो। पूरा कुनबा चल पड़ा। हर किसी के पास यकीन था कि उनमें से किसी-न-किसी के पास से जरूर निकलेगी कोई-न-कोई लालटेन। हुआ वही जिसका डर था। खाली लालटेन,  लालटेन बोलते रहने से कहीं लालटेन का साथ मिलता है! और अब तो हाथ भी हाथ न रहा, तेरा मेरा साथ न रहा की नौबत आ गयी। बात यह है कि मिट्टी हो चुकी देह पास-पास होती भी है तो एक-दूसरे के साथ नहीं होती है।  अब और बात आगे बढ़ाने से क्या फायदा!  हाँ फिर याद दिलाता हूँ मैंने कहानी एक तरह से कही, आप एक और तरह से सुनें। ध्यान रहे, कहानी कह तो मुर्दा भी सकता है, लेकिन सुन सिर्फ  जिंदा ही सकता है! हमारे इलाके में मुर्दा के कान में लोग चिल्लाकर कहते हैं-- कू...! सुना तो जिंदा, नहीं सुना तो राम न सत्त! कू.....

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