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युद्ध और अकाल

युद्ध और अकाल
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युद्ध और अकाल बहुत नजदीकी रिश्तेदार हैं, साथ-साथ चलते हैं। इसलिए यह बहस फिलहाल बहुत जरूरी नहीं है। मनुष्य दोनों का मुकाबला करता आया है। अभी पूरी दुनिया में युद्ध जैसी स्थिति है। अकाल की स्थिति भी बहुत दूर नहीं है। अमर्त्य सेन ने यह साबित किया है कि अकाल वस्तु की उपलब्धता के अभाव से नहीं, बल्कि आधिकारिकता, इंटाइटेलमेंट, क्रय शक्ति में आई कमी से पैदा होता है। हमारी बहुत बहुत बड़ी आबादी क्रय शक्ति में होनेवाली कमी के सामने है। क्रय शक्ति में कमी का संबंध रोजगार के अभाव और उच्च महगाई दर से होता है।
हम करोना से युद्ध के साथ ही क्रय शक्ति के अभाव में अकाल के सामने हैं। इस समय धूमिल की कविता याद आ रही है। पूरी कविता के बजाय यहां उसकी एक उक्ति की याद आ रही है, दया अकाल की और एकता युद्ध की पूजी है। हमें इस युद्ध को जीतना ही होगा और अकाल के पहाड़ के पार भी जाना होगा। उस पार जहां मुक्तिबोध के शब्दों में सुनील जल में कांपता रहता है रक्त कमल।

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