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पुनर्परिभाषा का दौर

करोना का कहर हमारी समझ के कई महत्वपूर्ण संदर्भों की पुनर्परिभाषा के लिए हमें उकसा रहा है। इनमें एक महत्वपूर्ण संदर्भ है आजादी। आज आजादी को भी पुनर्परिभाषित करने की जरूरत है। आजादी की यूटोपिया को समझने और निरस्त करने का दौर ये हो सकता है। गांधी जी ने अंतिम आदमी की सामग्रिक स्थिति से जोड़कर देखा। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने आजादी के सपने को इस तरह समझा कि जहाँ चित्त भय शून्य हो, माथा ऊँचा हो, ज्ञान मुक्त हो। 
नागार्जुन. मुक्तिबोध. रघुवीर सहाय आदि ने आजादी के यथार्थ को भिन्न तरह से देखा। 
अंग्रेजी में एक शब्द है independence जिसे हम सामान्यतः आजादी कहते हैं, हालांकि आत्मनिर्भरता अधिक करीब है। अंग्रेजी में एक शब्द है liberation जिसे हम सामान्यतः मुक्ति कहते हैं, हालांकि उदारता अधिक करीब है। 
आजादी, आत्मनिर्भरता, मुक्ति के और उदारता सभी सापेक्षिक अवधारणाएं हैं। 
गुलामी क्या है! कुछ संकेत तो ज्योतिबा फूले की किताब गुलामीगिरी से मिल जायेंगे। बाहरी आजादी या external independence इसलिए महत्वपूर्ण है कि वह आंतरिक मुक्ति internal liberation को सुनिश्चित करती है।
internal liberation या आंतरिक मुक्ति का अभाव external independence को प्रश्नांकित करती है, चुनौती देती है। यह चुनौती खतरनाक हद तक पहुंचे, इसके पहले समय रहते, इन्हें यथार्थ के आइने में पुनर्परिभाषित कर नये सपनों के आकाश में इंद्रधनुष रचने की जरूरत को समझना होगा। 



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