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गुजर जाने के बाद

गुजर जाने के बाद

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गुजर जाने के बाद

अपने बचपन को याद करता हूँ,

जो अब सिर्फ यादों में बचा है थोड़ा-थोड़ा

और जो अब लौटकर फिर नहीं आनेवाला

पिता कभी-कभार बुदबुदाते हुए याद आते हैं,

साँप गुजर गया और हम लकीर पीटते रहे

साँप भी नहीं लौटता अपनी छोड़ी हुई लकीर पर

कटोरा समाने लहराते हुए किसी फिल्म का गीत याद आता है

गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दुबारा, गजब की कशिश

कशिश मुहब्बत की भी, यौवन की भी

एक पल, एक दिन में कोई नहीं गुजरता है, कुछ भी नहीं गुजरता है!

पता ही कहाँ चलता है कि कैसे पल-पल हम सभी गुजर रहे होते हैं

गुजर रहे होते हैं, न लौटने, कभी न लौटने की स्थिति सामने है और

हमें खबर ही नहीं कि गुजर रहे होते हम पल-प्रति-पल!

गुजर जाने के बाद सिर्फ गुजरे हुए की याद लौटती है बार-बार लौटती है

गुजरा हुआ कभी किसी रूप में नहीं लौटता है, न उसके इशारे लौटते हैं

वक्त! वक्त  ताकतवर होता है, ताकतवर तो कठोर होता ही है

फिर भी वक्त पर कोई आरोप नहीं लगाया जा सकता

माँ! माँ तो बहुत ममतामय होती है, ममता तो होती ही है बहुत कोमल

गुजर जाने के बाद,

माँ की भी सिर्फ याद आती है, माँ का कोई इशारा भी कहाँ आता है!   

कोई इशारा नहीं आता माँ का!   

गुजर जाने के बाद

अपने बचपन को याद करता हूँ।

 

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