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स्थिति भयावह

स्थिति भयावह है
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जब इतने बड़े-बड़े लोगों, मैडल अलंकृत लोगों की यह स्थिति है तो यह पुरस्कार वह पुरस्कार, यह सम्मान वह सम्मान के बल पर अपने विशिष्ट होने के बोझ से लदे-फदे लोगों का क्या होगा। अमर्त्य सेन जैसे लोगों की रहवास की स्थिति से अवगत ही होंगे, नहीं है तो यह मसला आप के लिए विचारणीय नहीं भी हो सकता है। अभी Hitendra Patel जी की पोस्ट से पता चला कि राहुल सांकृत्यायन के पुत्र भी अपने फ्लैट के मामले में परेशानी में है। वे वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में आते होंगे। वरिष्ठ नागरिकों की कानूनी सहूलियतों की इस मामले में क्या उपलब्धता है, पता नहीं। अदालत से राहत मिल सकती है, पता नहीं। एक पर कोई अन्याय होता है अन्य खामोश रहता है। सभी अकेले हो गए हैं। असंगठित जनता संगठित शक्ति के सामने लाचार। संगठनों की एक अन्य दिक्कत भी है। जहाँ संगठन है, वहाँ शक्ति है और जहाँ शक्ति है वहाँ अन्याय पक्षपात है। आदमी क्या करे। हमारे नागरिक बोध की हालत यह है कि हम अत्याचार को नागरिक पर हुए अत्याचार के रूप में नहीं पढ़ते बल्कि जाति समुदाय धर्म लिंग वर्ग राज्य क्षेत्र हैसियत से जोड़कर पढ़ते हैं। कहाँ है नागरिक जमात! अन्ना आंदोलन के समय ही मैंने लिखा था कि यह आंदोलन राजनीतिक दल के रूप में बदल जायेगा। बुरी बात यह कि नागरिक जमात पब्लिक स्फियर में पब्लिक स्टंट के लिए जगह बन जायेगी। नागरिक जमात अपनी विश्वसनीयता और उद्देश्य से अंतहीन भटकाव में पड़ जायेगा। नागरिक जमात के नाम पर खाप पंचायतों की सक्रियता देखी जा सकेगी। खाप रहित नागरिकों का क्या होगा! खाप जैसे भी हों, दिख तो वही रहे हैं। एक पोस्ट लिखकर मैं भी अपने नागरिक दायित्व के पूरा होने के आनंद में डूब जाऊँगा, एक लाइक देकर या दिये बिना आप भी नागरिक कर्तव्य के सर्वोच्च निर्वाह के सुखसागर में ऊबडूब की मानसिक सुविधा का भोग करने में व्यस्त हो जायेंगे। क्या यही सच है कि कोई एक डूबेगा तो अन्य व्यस्त रहेंगे। पता नहीं कैसे कुमति लग गई....

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