अचानक छा जाता है अंधेरा
अचानक
छा जाता है अंधेरा
फिर उठता
है पर्दा
मंच
पर बिखर जाती है रौशनी
पर्दा
उठानेवाला भी अंधेरे में
दर्शक
दीर्घा भी अंधेरे में
बहुत
मद्धम उजाला नेपथ्य में
मंच
के नीचे से आती है आवाज –
दर्शकों
को अंधेरे में क्यों रखा जाता है!
जवाब
देता है पर्दा उठानेवाला –
कृपया,
शांति बनाये रखें
ऐसा
ही होता आया है शुरू से
नाटक
का यही है रिवाज
हँसता हुआ सूत्रधार, सूत्र से पीठ खुजलाते हुए –
जनता
खुश होना क्यों नहीं सीखती
जानते
हुए भी कि खुश न होना द्रोह है!
नेपथ्य
से आती है आवाज जनता खुश है महाराज!
काली
रौशनी कहकहे में लिपटकर पसर जाती है!
आकाशवाणी,
पुष्प वृष्टि –
नाटक
का यही है रिवाज
शांत
पापम, बिल्कुल शांत फालतू आवाज।
छा
जाता है अंधेरा।
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