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इंसाफ की डगर

इंसाफ की डगर
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लोकतंत्र से क्या अपेक्षा होती है? लोकतंत्र से जो भी अपेक्षा होती है, उस अपेक्षा के पूरे होना का दारोमदार लोकतंत्र के नेताओं पर होता है। लोकतंत्र के नेता अपने व्यवहार में लोकतांत्रिक हों भी यह जरूरी तो नहीं रह गया है! फिर भी उम्मीद तो, उन्हीं से होती है। 1961 में एक फिल्म आई थी – गंगा जमुना। भारत की संस्कृति गंगा-जमुनी है। इस फिल्म में शकील बदायूनी का एक गीत है, इसे गायक हेमंत कुमार ने गाया है। यह गीत बहुत लोकप्रिय भी हुआ था, आज इसकी चर्चा कम होती है। संदेश यह कि लोकप्रियता चाहे जितनी ऊँची हो, एक दिन वह लोक स्मृति से निकल ही जाती है। बहरहाल उस गीत की कुछ पंक्तियों को याद किया जा सकता है –

इंसाफ की डगर पर बच्चो दिखाओ चल के
ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कल के
सच्चाइयों के बल पर आगे बढ़ते रहना
रख दोगे एक दिन तुम संसार को बदल के
अपने हों या पराए, सब के लिए हो न्याय
रस्ते बड़े कठिन हैं, चलना सम्हल सम्हल के
इंसानियत के सर पर इज्जत का ताज रखना
तन मन की भेंट देकर भारत की लाज रखना
जीवन नया मिलेगा अंतिम चिता में जल के

लोकतंत्र अपने नेताओं से इससे ज्यादा क्या उम्मीद रखता है! बहरहाल, बच्चे बड़े हो गये, बाकी तो दिख ही रहा है! लोकतंत्र के संदर्भ में, उसके खतरों के बारे में, महत्त्वपूर्ण पुस्तकें उपलब्ध न हों तो इस गीत को सुन लीजिए; उपलब्ध हों तो उन से गुजरते हुए इसे भी सुन लीजिए।

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