बीज
पुरखों ने बीज
दिया मुट्ठी भर
कहा इस पर अपने
विश्वास को टिकाये रखना
टिकाये रखना विश्वास
जैसे कोई अंधा टिकाये रखता है
हाथ की छड़ी पर
विश्वास और पार करता रहता है रास्ता
चाहे हो जितना
भी टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता, पार करता रहता है।
पुरखों ने बीज
दिया मुट्ठी भर
कहा इसे सम्हाल
कर रखना अपने पास
अपने पास जैसे
धरती रखती है सब कुछ अपने पास
मिला लेती है
अपने में,
नष्ट करने के लिए नहीं
लौटा देती है,
फिर ढेर सारा फल, बीज, वृक्ष
और बहुत कुछ
किसी चीज को सम्हालकर
रखने के लिए नहीं है कोई सुरक्षित जगह
बस धरती है सुरक्षित
जगह,
समझना धरती में तुम हो
धरती में होते
हुए तुम महसूस करना धरती तुम में है।
पुरखों ने बीज
दिया मुट्ठी भर
कहा धरती का विश्वास
आकाश में है
समझना तुम आकाश
में हो धरती के विश्वास के साथ
यह मत भूल जाना
कि आकाश भी तुम में है उतना ही
बिल्कुल उतना
ही जितना तुम हो आकाश में।
पुरखों ने बीज
दिया मुट्ठी भर
कहा आकाश का विश्वास
सागर में है
समझना तुम सागर
में हो
धरती और आकाश
के विश्वास के साथ
सागर भी तुम में
उतना ही है,
जितना सागर में
तुम हो।
पुरखों ने बीज
दिया मुट्ठी भर
कहा सागर का विश्वास
तुम्हारे पसीने में है
तुम अपने पसीने
में रहना
याद रखना उतना
ही पसीना तुम में है,
धरती आकाश और
सागर के विश्वास के साथ।
पुरखों ने बीज
दिया मुट्ठी भर
कहा बीज को सम्हालकर
रखना
अपने पसीने के
साथ,
पसीना में ही सब सुरक्षित हैं --
बीज धरती आकाश
सागर और इन सब का विश्वास।
पुरखों ने बीज
दिया मुट्ठी भर
कहा सम्हालकर
रखना विश्वास
विश्वास सम्हाल
कर रखना पसीना में।
पुरखों ने बीज
दिया मुट्ठी भर
कह कि पसीना की
कमी हो जाने पर
कुछ नहीं बचेगा
तुम में और न तुम बचोगे किसी में।
पुरखों ने बीज
दिया मुट्ठी भर
कहा सम्हालकर
रखना।
पुरखों के दिये बीज को सुरक्षित रखने के लिए पसीना बहाना होगा बीज भी क ई गचना बढ़ेंगें और पसीने में सागर आकाश पृथ्वी सभी भी सुरक्षित।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
आभार
जवाब देंहटाएंआभार। अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंआभार
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