पृष्ठ

ध्रुवीकरण

देश का हाल हवाल

––––––––––

सामान्यतः, राजनीति पर बात करना पेशेवर राजनेताओं, पत्रकारों का काम है; एक भिन्न स्तर पर नागरिकों का भी काम है। राजनेताओं और पत्रकारों का यह काम नागरिकों के काम का ही विस्तार है। बल्कि कहना चाहिए कि कोई भी काम नागरिक अधिकार की परिधि में ही संभव और संपन्न होता है। नागरिक जमात का व्यक्तिगत या सामूहिक सामाजिक स्तर पर अपने अधिकारों से निरपेक्ष हो जाना नागरिक जीवन के लिए शुभ संकेत नहीं हो सकता। हाँ, राजनेताओं, पत्रकारों के मंतव्यों के आयाम और गहनता में अंतर होता है। अधिकार के कई पहलू होते हैं। अधिकार का ही एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू कर्तव्य है। नागरिक अधिकार और कर्तव्य के तहत इस पर विचार करना जरूरी है। इस विचार का मूल उद्देश्य आत्म प्रचार, सहमति का संधान न हो कर, आत्म प्रकाश है; बस इतना कि मैं जो सोचता हूँ। अच्छा अब कोसिश करता हूँ।

ध्रुवीकरण का मतलब

–––––––

आजकल यह शब्द बार-बार सुनाई पड़ता है। क्या होता है, ध्रुवीकरण! क्या किसी संदर्भ में जन या जनमन का संगठित होना  ध्रुवीकरण है? क्या संगठित होना ही ध्रुव बनना है? क्या ध्रुवीकरण विचारधारात्मक होता है? क्या ध्रुवीकरण भावधारात्मक होता है? क्या ध्रुवीकरण के लिए विचार को भावना में लपेटकर असरदार बनाया जा जाता है? क्या ध्रुवीकरण में भावनाओं को विचार के पोशाक में पेश किया जाता है? ध्रुवीकरण अच्छा है? ध्रुवीकरण बुरा है? ध्रुवीकरण एक सहज सामाजिक प्रक्रिया है? संगठन विहीन ध्रुवीकरण हो सकता है? भेड़िया धसान है ध्रुवीकरण? ध्रुवीकरण का मतलब भीड़तंत्र है? क्या ध्रुवीकरण बद्ध पूर्वग्रहों की पुष्टि की बारंबारिता है? इन में से या स तरह के सवालों के जवाब हाँ/ना में नहीं दिया जा सकता है। इन पर विचार करना होगा; इन पर बार-बार सोचना होगा। इस सोच में आत्मनिष्ठता, वस्तुनिष्ठता, हीन-निष्ठा और निष्ठा-हीनता के भी तत्त्व हो सकते हैं; इन तत्त्वों की विभिन्न आनुपातिकता भी किये जानेवाले विचार में सन्निहित हो सकते हैं। एक बात की ओर इशारा कर देना यहाँ जरूरी है, इन सवालों के जवाब हर किसी को अपने लिए ढूँढ़ना नहीं, सोचना होगा; ढूँढे हुए विचार रेडीमेड होते हैं, उनमें कतर-ब्यौंत कर काम तो चलाया जा सकता है। काम-चलाऊ से काम चलाने की मजबूरी तो हो सकती है, इस मजबूरी का आदर करते हे भी यह समझना जरूरी है कि काम-चलाऊ तो अंततः काम-चलाऊ ही होता है, न! कहने का आशय है ––– अनायास हासिल होनेवाले जवाब पर आँख-नाक-कान बंद कर भरोसा करना अहितकर होता है, कम-से-कम इस समय तो हितकर नहीं हो सकता है। साफ कहूँ? मैं भी इन सवालों पर सोच रहा हूँ, हो सके तो आप भी सोचिए। मैंने क्या सोच रह हूँ? अभी बताना ठीक नहीं। इससे आपके सोचने पर संक्रामक असर पड़ सकता है। मैं इस से बचना-बचाना चाहता हूँ, इसलिए अभी बताना ठीक नहीं। वह बाद में, उनके लिए जिन्हें रेडीमेड चाहिए, या जिन्हें उसमें कतर-ब्यौंत कर काम-चलाऊ सोच पाने में सुविधा होगी उनके लिए!

ध्रुवीकरण : संभावित जवाब

––––––––––––

 

क्या होता है, ध्रुवीकरण! क्या किसी संदर्भ में जन या जनमन का संगठित होना  ध्रुवीकरण है? नहीं किसी संदर्भ में जन या जनमन का संगठित होना ध्रुवीकरण नहीं है। संदर्भ हट जाने के बाद भी उस खास संदर्भ को किसी अन्य संदर्भ या काल्पनिक संदर्भ से जोड़कर जन और जनमन का किसी अप्रकट उद्देश्य से संगठित बना रहना ध्रुवीकरण है।

क्या संगठित होना ही ध्रुव बनना है? नहीं संगठित होना ध्रुव बनाना नहीं है, वह तब तक दल बनाना है, जब तक उसके उद्देश्य, कार्य-पद्धति, उसके स्रोत सुपरिभाषित और सार्वजनिक रूप से घोषित रहते हैं तथा वे इस पर बने रहते हैं। ध्रुवीकरण दल के बाहर साधारण नागरिकों का होता है ; दल के भीतर के लोगों के बीच यह गुटबंदी कहलाता है।

क्या ध्रुवीकरण विचारधारात्मक होता है? नहीं। किसी भी, तर्कसंगत, विवेकपूर्ण मानव-मूल्यों की सापेक्षता में हित-बोध से संपन्न विचारधारा से दल के बाहर के लोगों को जोड़ना आंदोलन कहलाता है। यह अपने आप में ध्रुवीकरण नहीं है, हाँ इस आंदोलन के खड़ा करने में ध्रुवीकरण-कारक तत्त्वों के इस्तेमाल के प्रति सदैव सचेत रहना चाहिए।  

क्या ध्रुवीकरण भावधारात्मक होता है? हाँ, मनुष्य की नैसर्गिक भावधाराओं को अपचालित करके ध्रुवीकरण किया जाता है। इसके लिए भयदोहन, और लोकलुभावन (पॉपुलिस्ट) वादों, इरादों, अतीत और कई बार गढ़े हुए इतिहास-हंता अतीत और सुनहरे भविष्य के माया-जाल को विभिन्न तरीके से सजाया एवं फैलाया जाता है। ऐसा करनेवाले लीडर को उत्तेजक और उन्माद-पसंद, समाज और समुदायों के बीच निरंतर युद्धक-परिस्थिति बनाये रखा जाता है –– ये डेमागॉग (Demagogue) कहलाते हैं। ये अपने प्रभाव विस्तार के क्रम में सज्जनता को दुर्जनता से विस्थापित करने की दिशा में बढ़ने से परहेज नहीं करते। इस तरह से देखें तो, अपचालित भावधाराओं की पेशबंदी विचारधारा के रूप में की जाती है। साधारण नागरिक के सहज जीवनयापन के नजरिये से देखें तो यह सब से अधिक हानिकारक होता है।

क्या ध्रुवीकरण के लिए विचार को भावना में लपेटकर असरदार बनाया जा जाता है? नहीं। यह नैसर्गिक भावधाराओं के अपचालन से बनी क्षतिकर विचारधारा की चपेट में आने से सही विचारधारा को बचाने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में खतरा होता है –– सही विचारधारा भी तात्कालिक रूप से प्रभावी दिखने-बनने के चक्कर में विचारधारा का मूल सूत्र हाथ से छूट जाता है और वह खुद भावधारा के भँवर में फँस जाता है; इस तरह सुचिंतित विचारधारा के हारने और अपचालित भावधारा के जीतने की दुखांत पटकथाएँ सामने आती हैं। इन दुखांत पटकथाओं में कुत्सित हास्य-विनोद के फूहड़, निकृष्ट बिंबों का खुलकर व्यवहार होता है –– साधारण आदमी की मनःस्थिति अपने बहते हुए लहू को आलता की तरह देखता और विभोर होता है।   

क्या ध्रुवीकरण में भावनाओं को विचार के पोशाक में पेश किया जाता है? हाँ। युक्ति-युक्तता, वास्तविकता और बुद्धि-गम्यता से काटकर नैसर्गिक भावनाओं के आधार पर अहितकर विचारधारा की पेशबंदी की जाती है।

ध्रुवीकरण अच्छा है?  अच्छा हो सकता है, यदि ध्रुवीकरण के वास्तविक संदर्भ के हटते ही यह अपने पीछे एक नैतिक चेतावनी और वैधानिक प्रावधानों को सुनिश्चित करके समाप्त हो जाये। ऐसा होना थोड़ा मुश्किल इसलिए भी होता है कि ध्रुवीकरण के पीछे जो सायासता होती है वह सायासता ध्रुवीकरण के विसर्जन में नहीं होती है।

ध्रुवीकरण बुरा है? नहीं। समुचित संदर्भ के बाद दीर्घकाल तक इसका बना रहना, सक्रिय रहना बुरा है। ध्रुवीकरण एक सहज सामाजिक प्रक्रिया है? हाँ। यह प्रक्रिया खतरनाक तब हो जाती है, जब इस सहज सामाजिक प्रक्रिया का पर्यवसान जटिल राजनीतिक प्रक्रिया हो जाता है।  संगठन विहीन ध्रुवीकरण हो सकता है? हो सकता है। नागरिक जमात के दबाव में ऐसा हो सकता है। जमात र संगठन का अंतर ध्यान में रहे तो बात अधिक साफ हो सकती है। भेड़िया धसान है ध्रुवीकरण? नहीं। भेड़िया धसान का आधार मनुष्य की सहज अनुकरण वृत्ति रचती है। सहज अनुकरण वृत्ति ने मनुष्य को मनुष्य बनाने में बड़ा योगदान किया है, इसे सभ्यता के किसी चरण में छोड़ा नहीं जा सकता है, न इसकी निंदा की जा सरकती है। अनुकरण की सहज वृत्ति में अनुकरण के पीछे जब दिमाग अनुपस्थित और चेतना निष्चेष्ट रहती है एवं सारी गति बाह्य कारकों के नियंत्रण में रहती है। ध्रुवीकरण का मतलब भीड़तंत्र है? ध्रुवीकरण का मतलब भीड़तंत्र नहीं है, लेकिन भीड़तंत्र का नतीजा हो सकता है। क्या ध्रुवीकरण बद्ध पूर्वग्रहों की पुष्टि की बारंबारिता है? बद्ध पूर्वग्रहों की पुष्टि की बारंबारिता है अपने आप में ध्रुवीकरण नहीं है, यह ध्रुवीकरण की पूर्व शर्त है। आगे और..


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें