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मजबूरी में हँस लेते, रोया नहीं करते हैं

प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan

हम खत पढ़ने में, वक्त जाया नहीं करते
हुनर है कि सीधे जवाब दे लिया करते हैं

तुम्हारे इंतजार का हिसाब नहीं करते हैं
तस्वीर से, हम कलाम कर लिया करते हैं

मजबूरी में हँस लेते, रोया नहीं करते हैं
अपने गम में, खुशी का इजहार करते हैं

हाँ किसी गुनाह को गुनाह नहीं कहते हैं
बस गुफ्तगू में शरीक हो लिया करते हैं

दिन में आसमान के, तारे गिना करते हैं
चुभे काँटे की गिनती नहीं किया करते हैं

मजबूरी में हँस लेते, रोया नहीं करते हैं
जिंदगी हासिल नहीं, जी लिया करते है

हुनर है कि सीधे जवाब दे लिया करते हैं

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