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सब कुछ सही सलामत है, एक मुहब्बत है, जो उजड़ी है

प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan

जो गुजर रही है, पहली बार किसी पर नहीं गुजरी है
आँखों में पतंगों की तस्वीरें, पहली बार नहीं उतरी है

सब कुछ सही सलामत है, एक मुहब्बत है जो उजड़ी है
कहकर गया अलविदा, न जाने आँख में क्या उमड़ी है

जिंदगी इस बार कुछ इस तरह कि ख्वाब में फुगड़ी है
देवता वसंत के नाचते हैं, मैदान जंग की नहीं, जुबड़ी है

यकीनन, गुनाह आँखों का नहीं है जो रुखसार धुबरी है
छिपाये छिपता नहीं हकीकत, यह उधार की लुगड़ी है

टूट कर मिट्टी चमकती है कोडरमा की, तलैया झुमरी है
सब कुछ सही सलामत है, एक मुहब्बत है, जो उजड़ी है 

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