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यही मयस्सर अकेलेपन के अँधेरे में सफर कर लेते हैं।

प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan

पूजा में देवता फूल ग्रहण करना स्वीकार लेते हैं।
प्रेम में देवता फूल बन जाना स्वीकार कर लेते हैं।

सच अपनी ऊँचाइयों-गहराइयों में एक हो लेते हैं।
तू न समझे, चल हम इसको मुनासिब मान लेते हैं।

हाँ मुहब्बत है लाम तो अक्सर कमान काट लेते हैं।
देवता फूल और फूल देवता में खुद को बदल लेते हैं।

हम खुद से निकलते हैं बस जेब में हुनर रख लेते हैं।
वे कब के हवा हुए जो मुश्किल में लाज रख लेते हैं।

हम तो लिखने की मेज पर सिर टिका कर रो लेते हैं।
यही मयस्सर अकेलेपन के अँधेरे में सफर कर लेते हैं।

दिन इतबार का, तुम पर दिल से ऐतबार कर लेते हैं।
जेब खाली है मगर कमाल कि हम बाजार कर लेते हैं।

किसी की आँख में चढ़ना इस तरह कबूल कर लेते हैं।
आँसू के साथ निकलकर बह जाना कबूल कर लेते हैं।

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