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हाथ की चलनी से पानी क्या भरूँ

प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan

जब खुद पर ही नहीं तो तुझ पर यकीन क्या करूँ
बलखाती नदी, हाथ की चलनी से पानी क्या भरूँ

सब लुट गया पानी में अब और पानी से क्या डरूँ
पंख सारे बिक गये आसमान खाली, पर क्या उड़ूँ

एक बाँकी मुस्कान है सिवा उसके बंधक क्या धरूँ
सौ बार तो उजड़ा हूँ अब और कितनी बार उजड़ूँ

इस तूफान में तिनका है हाथ, तो और क्या पकड़ूँ
जिंदगी बता किस तरह जमूँ, कि फिर क्या उखड़ूँ

जब खुद पर ही नहीं तो तुझ पर यकीन क्या करूँ
बलखाती नदी, हाथ की चलनी से पानी क्या भरूँ




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Sudhir Kumar Jatav, Rajesh Kumar Yadav, Snehlata Singh और 9 अन्य को यह पसंद है.

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