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उड़ान पर है संविधान

प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan


तुझे डाँटने का भी तो हक है नहीं करूँ तो क्या करूँ
डाँट दिमाग में है आँख में मुहब्बत करूँ तो क्या करूँ

गैर है मुझे इसका कोई इल्म नहीं करूँ तो क्या करूँ
पूछूँगा दिल से कभी फिल वक्त मैं करूँ तो क्या करूँ

हाँ होंगे कायदे जरूर मालूम नहीं करूँ तो क्या करूँ
नजर में नजर नहीं कान में हल्ला करूँ तो क्या करूँ

जो कहकर गया परदेश याद नहीं करूँ तो क्या करूँ
उड़ान पर है संविधान इन दिनों करूँ तो क्या करूँ

वापस बुलाने का हक नहीं हासिल करूँ तो क्या करूँ
ये शहर दिल्ली की रवायत है अब करूँ तो क्या करूँ



मगर जीवन है फिर भी सुंदर

प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan

छान में मरी हुई चूहिया की तरह
जब तारीख गन्हाने लगे तो
जीवन और मृत्यु की शाश्वत समस्याओं के
शाश्वत हल खोजने के बदले
जरूरी हो जाता है मृत्यु को विस्थापित करना

बहुत बुरा होता है किसी तारीख का इस तरह गन्हाना
बहुत कायराना होता है मरी हुई तारीख से आँख चुराना
उससे भी बुरा होता है मरी हुई तारीख की छाती पर
लँगड़े पैर को टिकाकर फोटू खिंचवाना
और हँस देना दुर्गंध से बचने के लिए
तीखी हँसी की धार से अपनी नाक छप्प से कटवा लेना

मरी हुई तारीख जब
अपनी सरहद पर जाकर गन्हाती है
तब थोड़ा आसान होता है
चूजों के बीच मुर्गियों का सभा लगाना
मुश्किल होता है बहुत कामगारों का
अपने बच्चों के बीच लौट आना

मरी हुई तारीख को विस्थापित करना संभव है
संभव है विषप्रभाव के नीलेपन पर गिरे ओसकण
और अपराजिता के नीलवदन पर जमे अश्रुकण में 
फर्क करते हुए सभ्यता की सरहद को क्षितिज तक फैलाना

चाहे जितनी गन्हाये तारीख
मगर जीवन है फिर भी सुंदर

भरें, किसी और ही का खजाना

प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan

दो चार बातें मुहब्बत की फिर औकात बताना
छाता खोलकर, बरसात में जी, भरकर नहाना


छाता-बादल को तेरा इरादा समझ में न आना
हाय रे हाय, यह आया देखो अब कैसा जमाना

बड़ी घटना है इस दिल का धर्मशाला हो जाना
सिले दीवार पर, जले काठ से नाम लिख जाना

बात मेरी थाली की जो करें वो साहिब रोजाना
और नीतियों से भरें, किसी और ही का खजाना

दोस्तों के अंदाज में है अब तो कम ही दोस्ताना
हाय, कातिल का अंदाज! है कितना कातिलाना



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Ranjit Kumar Sinha, Pankaj Jain, Kumar Sushant और 9 अन्य को यह पसंद है.

मगर ये बे-दाम करता हूँ

प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan

थोड़ी-सी जो फुरसत है, तुम से कलाम करता हूँ
हाँ, हर बात पर दुआ करता हूँ सलाम करता हूँ

दिल में भरोसे का कोई पुख्ता इंतजाम करता हूँ
दिहाड़ी हूँ, बीमारी में ही थोड़ा आराम करता हूँ

वो जो मेरा अजीज है उसी को बदनाम करता हूँ
मदद करता नहीं, करता हूँ तो गुमनाम करता हूँ

आजाद खयाली को तेरी हँसी का गुलाम करता हूँ
बुरा न मानो अगर तो आज यहीं मुकाम करता हूँ

हाथ खाली है जाने क्या दिन भर गोदाम करता हूँ
मिहनती हूँ लगा रहता हूँ मगर ये बे-दाम करता हूँ
थोड़ी-सी जो फुरसत है, तुम से कलाम करता हूँ
हाँ, हर बात पर दुआ करता हूँ सलाम करता हूँ



लाज, सिखलाया नहीं जा सकता

प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan

जी हर जख्म को दिखलाया नहीं जा सकता
किसी को लाज, सिखलाया नहीं जा सकता


भूखों को बातों से बहलाया नहीं जा सकता
किसी को बराबर फुसलाया नहीं जा सकता

जो लगी ठोकर उसे भुलाया नहीं जा सकता
रूठी है, उसे फिर से बुलाया नहीं जा सकता

तेरी अदा पर, और पगलाया नहीं जा सकता
पत्थरों को आँसू से नहलाया नहीं जा सकता

मरे हुए को मंतर से जिलाया नहीं जा सकता
सच है कि मुर्दों को सहलाया नहीं जा सकता

उसे मालूम बाकी किसी को कुछ नहीं मालूम है

प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan

सब को मालूम हो कि मुझे कुछ नहीं मालूम है
सब को मालूम है किसी को कुछ नहीं मालूम है

तेरी इस अदा पर फिदा कि कुछ नहीं मालूम है
कत्ल हुआ किसका बहा लहू कुछ नहीं मालूम है

भोला इत्ता कि काला सफेद कुछ नहीं मालूम है
बेरोजगारी, भूख, गरीबी है कुछ नहीं मालूम है

क्या लोकतंत्र है! संविधान! कुछ नहीं मालूम है
नशा में तो कहता हर कोई कुछ नहीं मालूम है

किसने खाया? क्या खाया? कुछ नहीं मालूम है
किसके हाथ में किसका हाथ कुछ नहीं मालूम है

पीठ पर है हाथ क्यों उसके कुछ नहीं मालूम है
उसे मालूम बाकी किसी को कुछ नहीं मालूम है