पृष्ठ

हारा नहीं पर

हारा नहीं पर थका बटोही
हरियर कचोर दूब की
नोक पर अटकी
ओस की बूँद को
पलकों से चुन लूँ
ऐसी कला कहाँ आती है

अत्याचारी के अस्त्र-शस्त्र को
कविता से फूल बना दूँ
ऐसी कारीगिरी
कहाँ आती है

राहत और खैरात
माँगती हथेलियों पर
टूटे सपनों का कोई टुकड़ा
चुपके से रख दूँ
ऐसी बात कहाँ भाती है

वन में और उपवन में
मन में और चितवन में
भय और आतंक बसा है
कलियों के अधरों पर
राग बसंती रच दूँ
ऐसी विद्या कहाँ आती है

हारा नहीं पर थका बटोही
हरियर कचोर दूब की
नोक पर अटकी
ओस की बूँद को
पलकों से चुन लूँ
ऐसी कला कहाँ आती है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें