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मन माने की बात है

मन माने की बात
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कुंज भवन से निकल क्रोध में चीखने लगे कन्हैया
ये मन माने की बात है राधा, मन माने की बात

सुर न कोई ताल बचा है गावत क्या खूब गवैया
बैठे अचरज में सोच रहे हैं के धुनिहे इता रौइया
करुणा की बाँह पकड़ नाचे थमथम ता था थैया
बेचेगा तभी बचेगा, हाथ में जिनके खरा रपैया
दिल्ली पंचायत बन गई लखनऊ की भूलभूलैया
तूफानों के पाहुन बन गये अपने प्रिय धार खेवैया
अपनी फूटी आँखों से ही रही देखती जर्जर नैया
राग तिलस्मी गाते-गाते झूम रहे थे अपने भैया
सुनते रहे हम भी घर बैठे बनकर झूमरि तलैया

कुंज भवन से निकल क्रोध में चीखने लगे कन्हैया
ये मन माने की बात है राधा, मन माने की बात

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