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जाने क्यों

जाने क्यों मन मचलता है
जाने क्यों दिल नहीं लगता है 
कैसी बही बयार
मन का पाल नहीं खुलता है 
रेत-ही-रेत नदी में जाने क्यों
अब इधर से पानी नहीं बहता है 
सूरज तो वैसे ही
उठता है, ढलता है 
अंधेरा आराम से टहलता है!
वक्त कभी इस तरह भी बदलता है! 

11 टिप्‍पणियां:

  1. रेत-ही-रेत नदी में जाने क्यों
    अब इधर से पानी नहीं बहता है ---गहन लेखन।

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