सब कुछ बिसर गया
चोटिलताओं के साथ चलता रहा
ऑटो मिला पैदल चलने को बिसर गया
रेल मिली, शायिका मिली
जागरण बिसर गया
हवाई जहाज ने सब कुछ बिसरा दिया
अपनी जमीन भी बिसर गयी
हजार रूप होते हैं जंगल के
एक जंगल कटता गया
एक जंगल पसरता गया
इस तरह सब बिसरता गया
याद बस इतना रहा
किसी काम का नहीं
किसी के काम का नहीं!
क्या यही है जिंदगी!
क्या यही होती है जिंदगी
बिसरों का याद रखना!
जय मां हाटेशवरी.......
जवाब देंहटाएंआपने लिखा....
हमने पढ़ा......
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें.....
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना.......
दिनांक 20/ 07/2021 को.....
पांच लिंकों का आनंद पर.....
लिंक की जा रही है......
आप भी इस चर्चा में......
सादर आमंतरित है.....
धन्यवाद।
वाह
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंयादों में बहुत कुछ शामिल होता है । बिसरा सब यादों में जमा होता जाता है ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया कथ्य ।
जवाब देंहटाएंउसने कहा बिसर जाइए
जवाब देंहटाएंसब कुछ बिसर गया
.... याद बस इतना रहा
किसी काम का नहीं
किसी के काम का नहीं!
क्या यही है जिंदगी!
स्वयं को इस हद तक बिसर जाने से पहले सार्थक कामों में इतना जुट जाना चाहिए कि जब हम भूलने भी लगें खुद को, तो लोग हमें हमारे आस्तित्व की याद दिला दें।
बहरहाल, कविता कटु सत्य को प्रकट करती है।
बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार।
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