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ज्ञान अपाहिज

ज्ञान अपाहिज

ज्ञान अपाहिज
बोलनहारे खामोश बैठ गये
—  बोल दुलारे तू ही बोल!

चायवाला खुश मिजाज धुन में था
चाय की दुकान उदास!
बस एक बूढ़ा मेरा ही हम उम्र
थोड़ा-थोड़ा हम शक्ल भी
कोई जान-पहचान तो नहीं थी
लेकिन बैठते ही पूछ बैठा —
भाई आप मणिपुर को जानते हैं!
मैं ने कहा बस यही और इतना ही कि
मणिपुर भारत का ही एक राज्य है।
 
चाय की चुप्पी तोड़ते हुए
वह बुदबुदाया,
 खुद से ही बात करने लगा हो जैसे —
मणिपुर को कोई नहीं जानता
न हिंसा को जानता है
न घर शहर जलने को जानता है
 न अपनी चुप्पी को जानता है
न अंधेर नगरी को जानता है
न चौपट राजा को जानता है
न राजस्थान को जानता है
न मध्य प्रदेश को जानता है
न दिन जानता है न रात
न यूपी जानता है न गुजरात
न पानी में उतराते राजधानी को जनता है
न आग में जलती आबादी को जानता है
अपने पड़ोसियों की छोड़िये
खुद को भी नहीं पहचानता
सब के सब — ज्ञान अपाहिज!

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