पृष्ठ
▼
खराऊँ
चित्त चंचल क्यों
जो नहीं रहा खराऊँ
——–
पहले उदास फिर उतप्त मन
पूछा माहौल बड़ा भरकाऊ है
हमें शीघ्र अब यह बतलाओ
मेरा कहाँ खराऊँ है!
किस अजायबघर में रखा
किस को बेचा
वह तो नहीं बिकाऊ है!
सब चुप
बोले अति गंभीर सभासद
शांत क्रोधं शांत क्षोभं
शांत शांत शांत
सब सांतम!
वक्त बदल गया
स्वर्ण दंड में बदल खराऊँ
वह देखो जो दमक रहा है
बदलना बिकना नहीं है!
धीर ललित उदात्त!
चित्त चंचल क्यों!
जो नहीं रहा खराऊँ!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें