प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan
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जी, जी समझ गया, समझ गया,
बहुतै अच्छे तरीके से समझ गया
जी, कवि नहीं ,चाहिए कार्यकर्त्ता चाहिेए
मेरी मति में गति नहीं चाहिेए जड़ता चहिए
दो-चार नहीं हजार-हजार, चाहिए
चाहे चलाएँ, चरखा, चाहे चलाएँ तकली,
गाँधी चाहिए, मगर असली नहीं चाहिए, चाहिए नकली
तीन ही तो हैं मालिक जिन पर नाच रही आपकी पुतली
एक उपभोक्ता, दो कार्यकर्त्ता, तीन वोटकर्त्ता
मालिक यही तीन हैं इन तीनों का एकहि में पंच चाहिए
मैं समझ गया ठहरे आप गुसाईं
और हम सब बस मर्कट की नाईं
हर पूज्य पैर को जूता चाहिए
हर दल को कार्यकर्त्ता चाहिए
दो-चार नहीं हजार-हजार, चाहिए
भारत माता की, जय
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जी, जी समझ गया, समझ गया,
बहुतै अच्छे तरीके से समझ गया
जी, कवि नहीं ,चाहिए कार्यकर्त्ता चाहिेए
मेरी मति में गति नहीं चाहिेए जड़ता चहिए
दो-चार नहीं हजार-हजार, चाहिए
चाहे चलाएँ, चरखा, चाहे चलाएँ तकली,
गाँधी चाहिए, मगर असली नहीं चाहिए, चाहिए नकली
तीन ही तो हैं मालिक जिन पर नाच रही आपकी पुतली
एक उपभोक्ता, दो कार्यकर्त्ता, तीन वोटकर्त्ता
मालिक यही तीन हैं इन तीनों का एकहि में पंच चाहिए
मैं समझ गया ठहरे आप गुसाईं
और हम सब बस मर्कट की नाईं
हर पूज्य पैर को जूता चाहिए
हर दल को कार्यकर्त्ता चाहिए
दो-चार नहीं हजार-हजार, चाहिए
भारत माता की, जय
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