बहुत ही दुखद और शर्मनाक है। कहीं भी किसी की भी हो हत्या कभी भी कोई भी करे हत्या। यह दुखद और शर्मनाक है। कलंक है। शासन-प्रशासन की जबानी जमा-खर्च से यह कलंक धुल नहीं जाता है। साधारण आदमी की स्थिति तो यह है कि वह समझ ही नहीं पाता कि उसे किस ने मारा। सच और झूठ का चेहरा कैसा है यह नहीं मालूम होता है। वे जो उस वक्त अपने जीवन की सर्वाधिक निर्दोष स्थिति में थे, इस तरह से मार दिये गये! वे तीर्थ यात्रा पर थे। वे ईश्वर और शांति की तलाश में थे! वे ठीक उस वक्त किसी बदले की कार्रवाई में शामिल नहीं थे। वे अपने हक पर थे। वे मार दिये गये। इस की कोई भरपाई नहीं। ना जाने आनेवाला दिन कैसा है। मुझे पता नहीं इस समय किस से क्या माँग की जाये। मार कर किसी को किसी अन्य को जिलाया नहीं जा सकता। नफरत की लपट और उठेगी। मनुष्यता और झुलसेगी! ऐसे में क्या बात करूं! लेकिन बात तो करनी होगी क्योंकि ऐसे में, खामोशी का हर लम्हा हत्यारों के लश्कर में शामिल हो जाता है। ऊफ बहुत शर्मसार और लाचार हूँ।
आप की राय सदैव महत्त्वपूर्ण है और लेखक को बनाने में इसकी कारगर भूमिका है।
इंतज़ार बचा रहे
यही तो है जिंदगी
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चाहे जितना भी
खतरनाक हो मौसम
फूल के खिलने,
मुस्कुराने पर ऐतबार बचा रहे
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चाहे जितना भी
खतरनाक हो मौसम
फूल के खिलने,
मुस्कुराने पर ऐतबार बचा रहे
चाहे जैसा भी हो
आसमान का तेवर
पंछियों में उड़ान के
हौसले पर यकीन बना रहे
नमक से दाल की हो
जितनी भी दूरी
पसीने को नमक की ताकत पर
अंत तक भरोसा कायम रहे
भाषा में हो जितना भी
अर्थ संकोच
कविता में
संभावनाओं का आँचल
प्यार से पसरा रहे
चाहे जैसी भी हो जिंदगी
पर रौनक की राह रहे
बस यही तो है,
यही तो है जिंदगी,
यही है जिंदगी
यह मौसम मुहब्बत का नहीं है
चाहे जितनी बार कहे कोई
तेरी निगाह में में
मेरे इंतजार का घर बसा रहे!
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