विचार और संवेदना का साझापन
आप की राय सदैव महत्त्वपूर्ण है और लेखक को बनाने में इसकी कारगर भूमिका है।
पाठ
प्रफुल्ल कोलख्यान
9 जुलाई
मैं एक नया पेज बनाने की सोच रहा हूँ। यह पूर्णतः हिंदी साहित्य के छात्रों को समर्पित होगा। पूर्णतः छात्रोपयगी। हिंदी भाषा और साहित्य के पाठ की समस्याओं पर बहुत ही प्राथिमक स्तर की बुनियादी बातें होगी, मूलतः अवधारणात्मक स्वरूप के व्यावहारिक सवाल-जवाब होंगे। हिंदी भाषा, साहित्य और समाज की समझ के विकास का सामूहिक प्रयास होगा। कहना न होगा कि यह सब हिंदी साहित्य के छात्रों की दिलचस्पी और जुड़ाव से ही संभव होगा। यह एक प्रयोग होगा जाहिर है, इसके विफल या भग्न-मनोरथ होने की भी आशंका कोई कम नहीं है, फिर भी प्रयास का हौसला है... दोस्तों से अनुरोध है कि इस पर पर अपनी राय दें, वे इस पेज का नाम प्रस्तावित करें तो अतिरिक्त प्रसन्नता होगी...
1 साझाकरण
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Khushboo Sharma
,
Ruchi Bhalla
,
नूतन डिमरी गैरोला
और
122 अन्य
को यह पसंद है.
Kalpana Jha
बधाई। स्वागतयोग्य पहल।
9 जुलाई पर 08:39 पूर्वाह्न
Shandilya Saurabh
स्वागत।
9 जुलाई पर 08:47 पूर्वाह्न
Pradeep Singh
स्वागत है
9 जुलाई पर 08:56 पूर्वाह्न
Parul Pandey
Badhai !!!
9 जुलाई पर 09:14 पूर्वाह्न
Deepak Singh
बहुत ही जरूरी पहल है इसमें विभिन्न विषयों से संबन्धित अच्छी पुस्तकों की सूची भी प्रकाशित की जाय जिससे नए छात्र की उन तक आसान पहुच बने और वे लाल वाली, पीली वाली दवा से मुक्त हो सकें
9 जुलाई पर 09:15 पूर्वाह्न
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Harish Shivnani
अच्छा प्रयास,प्रतीक्षा रहेगी।
9 जुलाई पर 09:30 पूर्वाह्न
नटराज गुप्ता
Swagt h!
9 जुलाई पर 09:37 पूर्वाह्न
Hitendra Patel
मेरा एक सुझाव है। आपको अपनी भाषा को छात्रों के हिसाब से थोड़ा 'एडजस्ट ' करना होगा। मैं खुद इस तरह की एक पहल के बारे में सोच रहा था। इस समय के छात्र बहुत सपाट भाषा से ही जुड़ पाते हैं। बाद में, संभव है उनका भाषिक संस्कार थोड़ा बदले और वे साहित्यिक भाषा के महत्त्व को पहचान लें। बाकी बातें तो प्रक्रिया में ही स्पष्ट हो सकेंगी। मेरे शुभकामनाएं
9 जुलाई पर 11:07 पूर्वाह्न
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Sanjana Gupta
kuch English ke liye bhi socha kijiye sir
9 जुलाई पर 11:47 पूर्वाह्न
विमलेश त्रिपाठी
इंतजार रहेगा सर...।।
9 जुलाई पर 11:54 पूर्वाह्न
Pradeep Jewrajka
आपके सुझाव का स्वागत , हितेंद्र से सहमत होते हुए . ...
9 जुलाई पर 12:20 अपराह्न
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1
Santosh Singh
thanks for your initiative, but the problem is that most of the students try to avoid anything which is serious and requires proper attention and dedication, as they are habituated to READY 2 EAT. SIRF 5 MINUTE.!
अनुवाद देखिए
9 जुलाई पर 12:33 अपराह्न
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1
महेश सिंह
swagat hai !!
9 जुलाई पर 12:35 अपराह्न
संजय कुमार मिश्र
बिल्कुल स्वागत है ऐसे कदम का ......ऐसे प्रयास से मुझ जैसे लोगों को जो हिन्दी व्याकरण एवं साहित्य का कभी विधार्थी नहीं रहा को बहुत फायदा होगा......जल्दी प्रारंभ करें....
9 जुलाई पर 01:06 अपराह्न
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Rakesh Srivastava
सर आपको बहुत मेहनत करनी होगी .. पर हमें बहुत लाभ होगा
9 जुलाई पर 01:10 अपराह्न
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Arti Priya Jha
hardik swagt sir......
9 जुलाई पर 01:51 अपराह्न
Sheel Kumaar
Swagat...
अनुवाद देखिए
9 जुलाई पर 01:56 अपराह्न
Ranjana Singh
Shubh vichar ...
9 जुलाई पर 02:11 अपराह्न
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1
Krishna Srivastava
swagat he
अनुवाद देखिए
9 जुलाई पर 02:23 अपराह्न
Vinod Kumar
नेक कार्य है...
9 जुलाई पर 02:39 अपराह्न
Radheyshyam Singh
स्वागतम् !
9 जुलाई पर 02:52 अपराह्न
Manish Kumar Pandey
शुभारम्भ कीजिये ! संकोचवश जो छात्र कक्षा में पूछ नहीं पाते उन्हें लाभ मिलेगा !
9 जुलाई पर 02:56 अपराह्न
Aparna Anekvarna
shubh vichar hai..
9 जुलाई पर 02:57 अपराह्न
Pankaj K Agarwal
Hindi lokoktiyan evam muhavre avashya prakashit karen jisse mere jaise hindi ke aajivan proudh sikshsharthi ka gyan vardhan hota rahe.
अनुवाद देखिए
9 जुलाई पर 03:05 अपराह्न
Kamal Jeet Choudhary
Mera sahyoh rahega... Haardik Shubhkaamnai
9 जुलाई पर 03:36 अपराह्न
Rashmi Mishra
बहुत अच्छा विचार है,इसे कार्यान्वित ज़रुर करेँ
9 जुलाई पर 03:42 अपराह्न
Rakesh Karna
sarvottam vichar hain aapke .. ish page ke namkaran hetu :- " Kshitiz " nam par vichar kar sakte hain ..
अनुवाद देखिए
9 जुलाई पर 03:53 अपराह्न
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1
BM Prasad
आपकी पोस्ट से ये नहीं पता चल पाया की सामग्री किस स्टैण्डर्ड(सामान्य अर्थ में कक्षा)का होगा?
किसी एक वक़्त में हर स्टैण्डर्ड के पाठक होंगें
तो फिर कई पेज एक साथ चलाना होगा.
9 जुलाई पर 04:04 अपराह्न
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1
Vinod Sharma
नवांकुर, हिंदी-विमर्श, पाठशाला, साहित्यिक-हिंदी, प्रयास.....ये कुछ शीर्षक सूझ रहे हैं।
9 जुलाई पर 04:05 अपराह्न
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1
Vinod Sharma
आप जैसे शिक्षक के लिए ‘भग्न-मनोरथ’ जैसे शब्द के उपयोग की आवश्यकता ही क्यों पड़ी? निश्चिंत रहें, आपको भारी संख्या में जिज्ञासु मिलेंगे। वास्तव में लोग साहित्यिक हिंदी से बहुत दूर हैं। बोल-चाल की हिंदी से ही काम चला रहे हैं। यथार्थवाद के बहाने काम चल भी रहा है।
9 जुलाई पर 04:09 अपराह्न
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राहुल शर्मा
sir iska ek shirshak 'PRAYAAS' ho sakta hai..
9 जुलाई पर 05:35 अपराह्न
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1
Deepak Jaiswal
Great idea sir.humlogo ko intjar hai
अनुवाद देखिए
9 जुलाई पर 05:40 अपराह्न
Bhavna Chauhan
Bahut hi achha vichar hai. Swagat
9 जुलाई पर 06:26 अपराह्न
Dheeraj Kumar Singh
Ek mahan kary hoga yah.
9 जुलाई पर 07:06 अपराह्न
Binay Pathak
पहल नाम पर विचार किया जा सकता है|
9 जुलाई पर 07:39 अपराह्न
Trilok Nath Pandey
भाषा, साहित्य और समाज
9 जुलाई पर 07:59 अपराह्न
Pawan Singh
भारती। सक्रिय सहयोग प्रस्तावित।
9 जुलाई पर 09:13 अपराह्न
Rakesh Rohit
बहुत सुंदर विचार है। इसकी जरूरत है।
9 जुलाई पर 09:30 अपराह्न
Suchhit Kapoor
सुंदर विचार है महोदय । अकादमिक छात्र तो यहाँ पता नहीं कितने मिलें,लेकिन हम सभी को सीखने को मिलेगा ।
9 जुलाई पर 10:31 अपराह्न
Gulab Singh
zaruri....aur sarahniye....
9 जुलाई पर 10:42 अपराह्न
Haridev MP
यह शुभ विचार है । कंप्यूटर के युग में यह अवधारणा नवांकुरों के लिए उपहार होगी । साहित्य का बीजारोपण नई पीढ़ी के लिए नवोन्मेषी सिद्ध होगा ।
9 जुलाई पर 11:48 अपराह्न
Anoodit Saaz
विचार को अमली जामा पहनाऎं।हम आपके साथ हैं।
10 जुलाई पर 12:22 पूर्वाह्न
Raghubir Pandey
Bahut achhi soch hai.
10 जुलाई पर 12:43 पूर्वाह्न
गीता पंडित
shubharambh
अनुवाद देखिए
10 जुलाई पर 07:24 पूर्वाह्न
Jaya Sharma
10 जुलाई पर 08:38 पूर्वाह्न
प्रफुल्ल कोलख्यान
अप्रत्याशित रूप से मित्रों ने इस प्रस्ताव को सराहा है। क्षितिज, नवांकुर, हिंदी-विमर्श, पाठशाला, साहित्यिक-हिंदी, PRAYAAS जैसे नाम भी पेज के लिए सुझाये गये हैं। मैं आभार व्यक्त करता हूँ। इसमें किसी की भी, खासकर मेरी भूमिका शिक्षक की नहीं होगी। मेरी अपनी हिंदी ही बहुत अच्छी नहीं है। वे सभी जिनके मन में सीखने की क्षमता और जरूरत बनी हुई है, जिनके मन में छात्र-बोध बचा हुआ है, साथ-साथ प्रयास करेंगे। स्तर ▬▬ Standard की बात भी आई है। Standard का संबंध योग्यता से होता है। शुरू तो हो, चरित्र विकसित होता जायेगा। सब कुछ पहले से ही तय नहीं हो सकता है। हाँ, इस पेज का नाम मैं ‘बात-बात में बात’ या फिर ‘बात-बात में’ प्रस्तावित करता हूँ। दोस्तों से अनुरोध है कि दोस्तों के द्वारा सुझाये गये नाम के साथ मेरे प्रस्ताव पर भी विचार करें और बतायें।
10 जुलाई पर 04:00 अपराह्न
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संपादित
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3
Haridev MP
प्रफुल्ल जी, आपके द्वारा सुझाए गए नाम मक़सद के नज़दीक़ पहुँच रहे है । इस शब्द युग्म में साहित्य की ओर उन्मुख होने और हिन्दी सीखने का प्रकटीकरण नहीं हो रहा, जबकि हमारे मन में यह बात है । इसलिए बात-बात के बाद कोई अर्थ देता एक शब्द जुड़ जाए ।
10 जुलाई पर 06:10 अपराह्न
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1
प्रफुल्ल कोलख्यान
Binay Pathak
सर पहल हिंदी की विख्यात पत्रिका है। इसका ऐतिहासिक महत्त्व है। इसलिए यह नाम रखना उचित नहीं है।
10 जुलाई पर 08:38 अपराह्न
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1
Binay Pathak
प्रफुल्ल सर सोपान पर विचार करें क्योंकि आप छत्रों को शिखर तक पहुँचने के लिए सोपान उपलब्ध करवा रहे हैं
10 जुलाई पर 08:41 अपराह्न
प्रफुल्ल कोलख्यान
Hitendra Patel
सर, आपकी बात का ध्यान रखूँगा।
10 जुलाई पर 08:41 अपराह्न
प्रफुल्ल कोलख्यान
Binay Pathak
, सर सोपान भी ठीक है, लेकिन इससे पाठ प्रविधि का संकेत नहीं मिलता है!
10 जुलाई पर 08:49 अपराह्न
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2
प्रफुल्ल कोलख्यान
शब्द सहचर... शब्द साधना... भारी हो जाता है और जोर 'शब्द' पर पड़ जाता है...
Haridev MP
,
Hitendra Patel
,
BM Prasad
,
Rakesh Rohit
,
Sudhir Kumar Jatav
,
Hindi Mamta Dhawan
,
Jayprakash Manas
,
Jaya Sharma
,
गीता पंडित
,
Suchhit Kapoor
.,
Noor Mohammad Noor
, Neel Kamal,
Vipin Choudhary
...... दोस्तो कोई नाम सुझायें या फिर 'बात-बात में बात' पर अपनी राय दें...
10 जुलाई पर 09:04 अपराह्न
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Rakesh Rohit
चर्चा- परिचर्चा, भाषा के आंगन में!
10 जुलाई पर 09:10 अपराह्न
Haridev MP
बात-बात में बात ही ठीक रहेगा । इसकी सहजता और वाक्यांश स्वरूप के कारण ।
10 जुलाई पर 09:12 अपराह्न
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Sudhir Kumar Jatav
" बात बात में बात " एक उचित नाम रहेगा ।
10 जुलाई पर 09:26 अपराह्न
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2
Noor Mohammad Noor
Chhatravas...
10 जुलाई पर 09:39 अपराह्न
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प्रफुल्ल कोलख्यान
Noor Mohammad Noor
पार्टनर, यह अच्छा नाम है। लेकिन नाम धरने में सामासिक पदबंध और तत्सम से आयासपूर्वक बचना चाहता हूँ... मेरे मन में शब्द सलाह... पाठ विग्रह, शब्द संपदा, अर्थ विन्यास... जैसे सैकड़ों पदबंध आये और पुरइन पात पर पानी की तरह थोड़ी देर ठहर कर ... लुढ़क गये... मेरे में मन में " बात-बात में बात " अभी भी बज रहा है... सीढ़ी गोष्ठी की पाठ/ निर्वचन शैली को नये तरीके से आजमाने का है...? क्या कहते हो!
10 जुलाई पर 09:50 अपराह्न
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संपादित
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5
Suchhit Kapoor
फेसबुक पर बात बात में शुरू होने वाले पेज के लिए- बात बात में..लगता तो उचित है । जरूरी नहीं की भारी साहित्यिक सा नाम हो । मैं अनुमोदन करता हूँ ।
10 जुलाई पर 09:58 अपराह्न
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1
Amarnath Jha
Aapki soch bahut sakaratmk aur rachnatmk hai.
10 जुलाई पर 10:12 अपराह्न
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1
Amarnath Jha
इंतजार रहेगा
10 जुलाई पर 10:15 अपराह्न
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1
Noor Mohammad Noor
Yani..battkhi....theek hai...patner....
अनुवाद देखिए
10 जुलाई पर 10:22 अपराह्न
प्रफुल्ल कोलख्यान
Noor Mohammad Noor
पार्टनर बैठकी ठीक तो है परंतु इस पर क्रिया-स्थगन का नकारात्मक भार लदा हुआ है... सोचकर बताना..
10 जुलाई पर 10:33 अपराह्न
Noor Mohammad Noor
Baithki nhi patner...batt,khi....
10 जुलाई पर 11:52 अपराह्न
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1
Jayprakash Manas
बढ़िया है प्रस्ताव -
11 जुलाई पर 05:57 पूर्वाह्न
प्रफुल्ल कोलख्यान
Noor Mohammad Noor
का सुझाया नाम 'बत कही' बढ़िया है... आप क्या कहते हैं?
11 जुलाई पर 07:39 पूर्वाह्न
प्रफुल्ल कोलख्यान
कल पेज खुल जायेगा...
11 जुलाई पर 07:46 पूर्वाह्न
Asim Kumar
achchhee yojana hai.shubhkamanayen.
12 जुलाई पर 07:01 अपराह्न
Vishnu Rajgadia
Welcome
अनुवाद देखिए
13 जुलाई पर 07:22 पूर्वाह्न
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1
प्रफुल्ल कोलख्यान
उत्साह में पेज तो बना लिया है। लेकिन मुझे एहसास है कि यह जोखिम का काम है। छात्रों को नंबर चाहिए। नंबर के लिए 'गुरु कृपा'। वे जुड़ेंगे तो 'गुरु कृपा' के 'गुरु कोप' में बदल जाने का खतरा हो सकता है। गुरु जुड़ेंगे तो उनकी पोल-पट्टी के, गुरुडम के खुलने का खतरा ▬▬ वे भला क्यों जुड़ेंगे! मैं इस तरह खुद सीखने की कोशिश में हूँ, इस बात को भी वे सहज ही क्यों मानेंगे और सीखने में मुझे मदद हो तो उन्हें क्या फायदा! प्रेमचंद की भाषा सहज, साहित्य संप्रेषणीय बताया जाता है। प्रेमचंद की भाषा इतनी ही सहज है और साहित्य इतना ही संप्रेषणीय तो उच्च काक्षाओं में पढने-पढ़ाने की इतनी हुज्जत क्यों? बहरहाल पेज खुल गया है, गोदान का एक संदर्भ प्रायोगिक तौर पर वहाँ लगा दिया है...
13 जुलाई पर 09:15 पूर्वाह्न
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Neel Kamal
पेज का लिंक दीजिए ।
13 जुलाई पर 09:51 पूर्वाह्न
Deepak Singh
जोखिम कहाँ नहीं है लेकिन सीखने वाले तो सीखेंगे ही -गुरु भी , चेला भी | नंबरों के आगे भी दुनिया अभी बहुत कुछ बची है और हाँ सुरुआत बढ़िया है
13 जुलाई पर 02:13 अपराह्न
प्रफुल्ल कोलख्यान
Deepak Singh
सर, ठीक ही कह रहे हैं। देखें क्या होता है.... हौसला बढ़ाने के लिए शुक्रिया...
14 जुलाई पर 10:38 पूर्वाह्न
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Dilip Chanchal
badhai aapko accha kam hai.
14 जुलाई पर 11:09 पूर्वाह्न
Kumar Sushant
Acchi soch page kholne k Lea badhai aapko.
14 जुलाई पर 11:10 पूर्वाह्न
Suresh Upadhyay
भाषा के संसकार के लिये अच्छी पहल का स्वागत है
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