प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan
जी, कामयाबी को नहीं जानता मैं, कोशिश से ही अपनी दिलजोई है
कामयाबी तो बेवफा है, मेरी कोशिश के हुस्न की तासीर कब खोई है
तारीफ तवारुफ अल्फाज-ए-हकीकत क्या, आपने एहसास में बिलोई है
हँसी चेहरे पर है जैसे धरती पर फसल-ए-बहार ओ पुकार कहाँ खोई है
बहुत बोलती है आप की वे खामोशियाँ जिसे आपने हँसी से भिगोई है
रोकर पूरियाँ निकालती माँ, हँसकर पिता पूछते हाथ में कहाँ लोई है
जी, कामयाबी को नहीं जानता मैं, कोशिश से ही अपनी दिलजोई है
कामयाबी तो बेवफा है, मेरी कोशिश के हुस्न की तासीर कब खोई है
जी, कामयाबी को नहीं जानता मैं, कोशिश से ही अपनी दिलजोई है
कामयाबी तो बेवफा है, मेरी कोशिश के हुस्न की तासीर कब खोई है
दीठ को दीदार तो कभी हासिल हुआ ही नहीं जाने आँख क्यों रोई है
सिर पर लदी टोकरी में है वही फसल जो हमने दिल लगाकर बोई है
है इतिहास गवाह, कैसे नदियों से मिलने के बाद लहरों ने धार खोई है
वो जो बात मुकम्मल सराही आपने, उसे मैंने आँसुओं से बारहा धोई है
सिर पर लदी टोकरी में है वही फसल जो हमने दिल लगाकर बोई है
है इतिहास गवाह, कैसे नदियों से मिलने के बाद लहरों ने धार खोई है
वो जो बात मुकम्मल सराही आपने, उसे मैंने आँसुओं से बारहा धोई है
तारीफ तवारुफ अल्फाज-ए-हकीकत क्या, आपने एहसास में बिलोई है
हँसी चेहरे पर है जैसे धरती पर फसल-ए-बहार ओ पुकार कहाँ खोई है
बहुत बोलती है आप की वे खामोशियाँ जिसे आपने हँसी से भिगोई है
रोकर पूरियाँ निकालती माँ, हँसकर पिता पूछते हाथ में कहाँ लोई है
जी, कामयाबी को नहीं जानता मैं, कोशिश से ही अपनी दिलजोई है
कामयाबी तो बेवफा है, मेरी कोशिश के हुस्न की तासीर कब खोई है