बिसर गया

उसने कहा बिसर जाइए
सब कुछ बिसर गया

चोटिलताओं के साथ चलता रहा
ऑटो मिला पैदल चलने को बिसर गया 

रेल मिली, शायिका मिली
जागरण बिसर गया

हवाई जहाज ने सब कुछ बिसरा दिया
अपनी जमीन भी बिसर गयी

हजार रूप होते हैं जंगल के
एक जंगल कटता गया
एक जंगल पसरता गया
इस तरह सब बिसरता गया 
याद बस इतना रहा
किसी काम का नहीं 
किसी के काम का नहीं!
क्या यही है जिंदगी! 
क्या यही होती है जिंदगी
बिसरों का याद रखना! 

जाने क्यों

जाने क्यों मन मचलता है
जाने क्यों दिल नहीं लगता है 
कैसी बही बयार
मन का पाल नहीं खुलता है 
रेत-ही-रेत नदी में जाने क्यों
अब इधर से पानी नहीं बहता है 
सूरज तो वैसे ही
उठता है, ढलता है 
अंधेरा आराम से टहलता है!
वक्त कभी इस तरह भी बदलता है! 

सिर और मुकुट

धीरे-धीरे सिर छोटा होता जाता है। 
धीरे-धीरे मुकुट बड़ा होता जाता है। 
फिर मुकुट चेहरे पर उतर आता है।
मुकुट मुखौटा बनकर रह जाता है। 
मुकुट मुखौटा कवच न बन पाता है।
वक्त न तो मुकुट देखता है न मुखौटा

रैपर

रैपर चमकीला है
आक्रामक रूप से आकर्षक
 खरीदे जाने के लिए प्रस्तुत 

रैपर जैसा भी हो
कनटेंट की चाहत
रैपर के फटने की कथा लिखती है

रैपर तो अंततः फटता ही भद्रे

और तेरा मन! तेरा मन

और तेरा मन! तेरा मन!
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धरती कसमसा उठती है
नदियों का मुँह खुल जाता है 
पर्वत सिहर उठते हैं
डालियों में लचक लौटती है खनक के साथ 
दूब भीतर से हरियर होने लगती है
जब कभी उमड़ता है बादल

समुद्र तो बहुत बड़ा है
पता नहीं वहां क्या होता है 
जब कभी उमड़ता है बादल 

पर्यावरण सरस निर्मल 
अपने नितांत में कुहक उठता है मन
चिड़ै-चुनमुन की फुदक! आह क्या बात है!
अदहन गरम होने लगता है
और तेरा मन! तेरा मन। 
जब कभी उमड़ता है बादल।