सब कुछ बिसर गया
चोटिलताओं के साथ चलता रहा
ऑटो मिला पैदल चलने को बिसर गया
रेल मिली, शायिका मिली
जागरण बिसर गया
हवाई जहाज ने सब कुछ बिसरा दिया
अपनी जमीन भी बिसर गयी
हजार रूप होते हैं जंगल के
एक जंगल कटता गया
एक जंगल पसरता गया
इस तरह सब बिसरता गया
याद बस इतना रहा
किसी काम का नहीं
किसी के काम का नहीं!
क्या यही है जिंदगी!
क्या यही होती है जिंदगी
बिसरों का याद रखना!