बिसर गया

उसने कहा बिसर जाइए
सब कुछ बिसर गया

चोटिलताओं के साथ चलता रहा
ऑटो मिला पैदल चलने को बिसर गया 

रेल मिली, शायिका मिली
जागरण बिसर गया

हवाई जहाज ने सब कुछ बिसरा दिया
अपनी जमीन भी बिसर गयी

हजार रूप होते हैं जंगल के
एक जंगल कटता गया
एक जंगल पसरता गया
इस तरह सब बिसरता गया 
याद बस इतना रहा
किसी काम का नहीं 
किसी के काम का नहीं!
क्या यही है जिंदगी! 
क्या यही होती है जिंदगी
बिसरों का याद रखना! 

10 टिप्‍पणियां:

kuldeep thakur ने कहा…

जय मां हाटेशवरी.......
आपने लिखा....
हमने पढ़ा......
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें.....
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना.......
दिनांक 20/ 07/2021 को.....
पांच लिंकों का आनंद पर.....
लिंक की जा रही है......
आप भी इस चर्चा में......
सादर आमंतरित है.....
धन्यवाद।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

Onkar ने कहा…

खूबसूरत रचना

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

यादों में बहुत कुछ शामिल होता है । बिसरा सब यादों में जमा होता जाता है ।

Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल ने कहा…

सुन्दर सृजन।

Amrita Tanmay ने कहा…

बहुत ही बढ़िया कथ्य ।

Meena sharma ने कहा…

उसने कहा बिसर जाइए
सब कुछ बिसर गया
.... याद बस इतना रहा
किसी काम का नहीं
किसी के काम का नहीं!
क्या यही है जिंदगी!
स्वयं को इस हद तक बिसर जाने से पहले सार्थक कामों में इतना जुट जाना चाहिए कि जब हम भूलने भी लगें खुद को, तो लोग हमें हमारे आस्तित्व की याद दिला दें।
बहरहाल, कविता कटु सत्य को प्रकट करती है।

प्रफुल्ल कोलख्यान / Prafulla Kolkhyan ने कहा…

बहुत बहुत आभार।

प्रफुल्ल कोलख्यान / Prafulla Kolkhyan ने कहा…

बहुत बहुत आभार।