और तेरा मन! तेरा मन!
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धरती कसमसा उठती हैनदियों का मुँह खुल जाता है
पर्वत सिहर उठते हैं
डालियों में लचक लौटती है खनक के साथ
दूब भीतर से हरियर होने लगती है
जब कभी उमड़ता है बादल
समुद्र तो बहुत बड़ा है
पता नहीं वहां क्या होता है
जब कभी उमड़ता है बादल
पर्यावरण सरस निर्मल
अपने नितांत में कुहक उठता है मन
चिड़ै-चुनमुन की फुदक! आह क्या बात है!
अदहन गरम होने लगता है
और तेरा मन! तेरा मन।
जब कभी उमड़ता है बादल।
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