अपनी लहक में मैं ने कई बार, तेरे वजूद को छूना चाहा
ऐन वक्त एक एहसास ने रोक दिया, मैं ने मन को थाहा
क्या कि मेरे हाथ उतने पवित्र नहीं, भीतर कोई कराहा
हाथ बढ़ाया काँटे उग आये, मैं ने सिर्फ काँटा ही उगाहा
जिया कित्ता हिसाब नहीं, मैं ने जिंदगी को बस निबाहा
फर्ज में कसर न रहे कोई, अपनी जिंदगी में यही ख्वाहा
मिली चोट उसे अपना समझकर बहुत, हाँ बहुत सराहा
आँसू, जख्म, मवाद अपना, तेरा एहसास रूई का फाहा
यही किस्सा, यही किस्मत, और बस हाँ बस यही गाहा
अपनी लहक में मैं ने कई बार, तेरे वजूद को छूना चाहा
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